लखनऊ. जस्टिस वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने असंतोष जताया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को खत लिखकर कहा कि नए बने लोकायुक्त जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त बनाए जाने पर उन्होंने ऐतराज किया था फिर भी सरकार ने उनका नाम सुप्रीम को दिए 5 नामों में पहले नंबर पर शामिल किया.
उधर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कुछ लोग अपील करने वाले हैं जिनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 142 से सुप्रीम कोर्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति का अधिकार नहीं मिलता. पता चला है कि मुख्यमंत्री आवास में लोकायुक्त चुनने को हो रही बैठक में जस्टिस वीरेंद्र सिंह के नाम पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के ऐतराज के बाद मुख्यमंत्री ने उनका नाम वापस ले लिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को जो पांच नाम सरकार की तरफ से दिए गए उनमें पहले नंबर पर उनका ही नाम था. सूत्रों के अनुसार मुख्य न्यायाधीश इससे नाखुश हैं और सीएम ने उन्हें मनाने की कोशिश भी की है.
यूपी के राज्यपाल राम नाइक का कहना है, ‘कमी इसमें रही कि लोकायुक्त का जो अधिनियम है उसके अनुसार व्यवहार करने की आवश्यकता थी. उसकी पहल मुख्यत: मुख्यमंत्री को करनी होती है। जब सर्वसम्मति नहीं हो सकी, ये सबसे बड़ी विडम्बना है जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय को इस प्रकार का निर्णय लेना पड़ा.’ जस्टिस वीरेंद्र सिंह को भले सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्त चुन लिया हो लेकिन उन्हें लोकायुक्त की कुर्सी तक पहुंचने में अभी कई रुकावटें हैं. कानून के कई जानकार कहते हैं कि संविधान का अनुच्छेद 142 न्यायपालिका को लोकायुक्त चुनने का अधिकार नहीं देता. कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट से फैसला वापस लेने की अपील करने वाले हैं.
नए चुने गए लोकायुक्त जस्टिस वीरेंद्र सिंह का कहना है, ‘कानूनी प्रक्रिया में किसी पर रोक नहीं है. हर आदमी जा सकता है, उसमें कोई रोक नहीं है. जिसको जाना है जाए, जिसको नहीं जाना है, ना जाए. ये तो कानूनी प्रक्रिया है. किसी को रोका नहीं जा सकता.’ राज्यपाल ने मुख्य न्यायाधीश के तीन पन्ने के खत को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को भेज दिया है.