नई दिल्ली. आज से ठीक 23 साल पहले अय़ोध्या में विवादित ढ़ाचा गिरा दिया गया था और मंदिर का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पड़ा हुआ है. पिछले 23 सालों से ये मुद्दा देश की राजनीति की धुरी बना हुआ है और घुमा फिराकर बात मंदिर-मस्जिद पर आ ही जाती है.
देश के हर चुनाव में अयोध्या का मुद्दा कहीं ना कहीं अपनी पूरी अहमियत के साथ खड़ा रहता है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या कोई समाज या देश अपनी तमाम मुश्किलों, सवालों, तकलीफों और चुनौतियों के बीच एक ऐसे सवाल को 23 साल से उसी सिद्दत से पकड़े रख सकता है, जो विकास और बेहतरी की राह में कहीं से भी मददगार नहीं है.
अर्ध सत्य में आज हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि देश-दुनिया में 23 साल की कितनी अहमियत होती है. संघ प्रमुख मोहन भागवत हाल ही में कोलकाता में थे जहां उन्होंने कहा ‘मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवन में ही अयोध्या में मंदिर बनने का सपना पूरा हो जाएगा. भागवत ने ये भी कहा कि इसके लिए सबको तैयारी रखनी पड़ेगी’.
भागवत के इस बयान के बाद सवाल उठता है कि जब फैसला देश की सर्वोच्च अदालत को करना है तो तैयारी किसको रखनी पड़ेगी ? उधर अयोध्या मामले के पक्षकार हाशिम अंसारी मुल्क को चुनौती देते हुए मस्जिद बनाने पर जोर दे रहे हैं. इस मामले पर सियासी दल भी अपने फायदें के मुताबिक अयोध्या मंदिर को अपने-अपने तरीकें से रखते हैं.
अयोध्या का विवाद वैसे तो 65 साल पुराना है लेकिन 23 साल पहले विवादित ढांचा गिराया गया था. तारीख थी 6 दिसंबर 1992, तभी से इस देश का हर तबका और हर दल इस मुद्दे पर दिलचस्पी रखता है.
एक बार सोचिए 23 साल कितना बड़ा वक्त होता है और इतने समय में क्या कुछ हो सकता है. लेकिन आज भी हम 23 साल में अपना बेहतर भूल कर मंदिर लेकर बैठे हैं.
वीडियों में देंखे अयोध्या में विवादित ढ़ांचा गिराने के 23 साल का सच
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