हरियाणा में 10 साल Vs 10 साल की लड़ाई, भाजपा की हालत पतली!


चंडीगढ़.
लोकसभा में हाफ और विधानसभा चुनाव में भाजपा साफ करने की राह पर निकली कांग्रेस ने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ मुहिम छेड़कर भगवा पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है. पलटवार के तहत भाजपा ने ‘हुड्डा दें जवाब’ अभियान छेड़ा है. इससे सूबे की राजनीति गरमा गई है और दोनों सियासी दल आमने-सामने आ गये हैं.

हरियाणा मांगे हिसाब बनाम हुड्डा दें जवाब

हाल में हुए लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों ने विपक्ष खासतौर से कांग्रेस को ऑक्सीजन दे दिया है. कांग्रेस को लग रहा है कि अभी नहीं तो कभी नहीं लिहाजा हरियाणा कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष चौधरी उदयभान, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान की शुरुआत कर दी.

इसके तहत दीपेंद्र हुड्डा विधानसभा क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं और भाजपा सरकार को ललकार रहे हैं. अभी तक वह करनाल, यमुनानगर, पानीपत ग्रामीण, जुलाना, अंबाला शहर, राई, और सोनीपत शहर में पदयात्रा कर चुके हैं। 21 जुलाई तक उन्हें बरौदा, हांसी, नारनौंद, जींद, बावल और बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचना है. इस अभियान में कांग्रेस बहुत होशियारी से भाजपा सरकार के 10 साल के कामकाज का हिसाब मांगने के साथ साथ 10 साल रही हुड्डा सरकार की उपलब्धियों को भी बता रही है.

भाजपा मांग रही हुड्डा से जवाब

कांग्रेस को जवाब देने के लिए भाजपा के चाणक्य अमित शाह कुछ दिन पहले हरियाणा पहुंचे और उन्होंने महेंद्रगढ़ के ओबीसी सम्मेलन में केंद्र व राज्य की डबल इंजन सरकार द्वारा राज्य पर खर्च की गई राशि का पूरा ब्योरा पेश किया. साथ में  भूपेंद्र हुड्डा को अपने कार्यकाल का हिसाब देने की चुनौती भी दे डाली और भाजपा ने तत्काल ‘हुड्डा दें जवाब’ अभियान शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पिंजौर की फल व सब्जी मंडी में हुड्डा से 11 सवाल पूछकर इसकी शुरुआत की.

बसपा-इनेलो पर नजर

इस तरह हरियाणा का विधानसभा चुनाव 10 साल बनाम 10 साल बन गया है. भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है और कांग्रेस हरहाल में इसे भुनाना चाहती है. पार्टी का लोकसभा चुनाव में आप से जो गठबंधन हुआ था वो टूट चुका है लिहाजा आम आदमी पार्टी बेशक वहां चुनाव लड़े लेकिन उसका कोई प्रभाव नहीं दिख रहा. बसपा और इनेलो हाथ मिलाकर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 और बसपा को 1.28 फीसद वोट मिले थे, इससे तो नहीं लगता कि कोई खास फर्क पड़ेगा लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं. देखने वाली बात यह कि कांग्रेस और भाजपा में आमने-सामने के मुकाबले में यह गठबंधन क्या भूमिका निभाता है?

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