नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय अमेरिकी यात्रा के पहले दिन ही भारत को बड़ी कामयाबी मिली है. भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम यानी MTCR के सदस्य देशों में शामिल हो गया है. इस मामले से सीधे तौर पर जुड़े राजनयिकों ने बताया कि 34 देशों के इस समूह में भारत को शामिल करने के प्रस्ताव पर किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं जताई. इसके अलावा अमेरिका न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप NSG की सदस्यता के लिए भी भारत को समर्थन देने को तैयार हो गया है.
मोदी ने ओबामा को दिया धन्यवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान पीएम ने पीएम मोदी ने NSG और MTCR में समर्थन के लिए ओबामा को धन्यवाद दिया.
MTCR से भारत को होगा यह फायदा
ओबामा के समर्थन के बाद 34 देशों के Missile Technology Control Regime (MTCR) में भारत की एंट्री फाइनल हो गई है. MTCR में शामिल होने के बाद भारत हाई-टेक मिसाइल का दूसरे देशों से बिना किसी अड़चन के एक्सपोर्ट कर सकता है और अमेरिका से ड्रोन भी खरीद सकता है और बह्मोस जैसी अपनी High-End मिसाइल को बेच सकेगा. एमटीसीआर एक प्रमुख अप्रसार समूह है और इसका सदस्य बनने से भारत को अत्याधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी. MTCR का सदस्य बनने पर भारत को कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा जैसे अधिकतम 300 किलोमीटर से कम रेंज वाली मिसाइल बनाना ताकि हथियारों की होड़ को रोका जा सके. आयरलैंड में नार्वे के राजदूत रोल्ड नेस ने ट्वीट किया, ‘मिशन लगभग पूरा हो गया है. भारत के एमटीसीआर का सदस्य बनने से पहले ही कुछ प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं रह गई हैं.’ बता दें कि भारत ने एमटीसीआर सदस्यता के लिए पिछले साल आवेदन किया था और उसकी अर्जी ‘मूक प्रक्रिया’ के तहत विचाराधीन थी. किसी भी देश की आपत्ति के बिना प्रक्रिया की अवधि कल समाप्त हो गई.
क्या है न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG)?
यह 48 देशों का समूह है, जो परमाणु संबंधी चीजों के व्यापार को संचालित करते है. इस समूह का मकसद है न्यूक्लियर मैटेरियल का इस्तेमाल बिजली बनाने जैसे शांतिपूर्ण कामों के लिए हो. NSG यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यूक्लियर सप्लाई मिलिट्री इस्तेमाल के लिए डाइवर्ट न की जाए. NSG के 48 देशों में से एक देश भी अगर भारत को शामिल करने का विरोध करता है तो NSG में भारत को शामिल नहीं किया जाएगा. चीन भारत की इस मुहिम का विरोध कर रहा है जबकि अमेरिका भारत के साथ खड़ा है. स्विटजरलैंड ने समर्थन की बात कही है, वहीं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाल के चीन दौरे को भी NSG के मुद्दे पर चीन के रुख को नरम करने की पहल के तौर पर देखा जा रहा है.