नई दिल्ली: देश में सिर्फ जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत अपना अलग झंडा रखने का विशेषाधिकार मिला हुआ है, लेकिन अब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार भी राज्य के लिए अलग झंडा चाहती है.
कर्नाटक में भारत की राजभाषा हिंदी का विरोध पहले से चल रहा है. ऐसे में राष्ट्र ध्वज की जगह कर्नाटक का अलग झंडा बनाने की पहल पर सवाल और बवाल दोनों शुरू हो गए हैं. कर्नाटक को हिंदी के बाद तिरंगे से भी दिक्कत है क्या? कर्नाटक को कश्मीर बनाने की राजनीति क्यों ? आज इसी सुलगते सवाल पर होगी महाबहस.
भारत में भाषा और संस्कृति के नाम पर अलग राज्य की मांग तो होती रही है. राज्य की भाषा को बढ़ावा देने के नाम पर दूसरी भाषाओं का विरोध करने की राजनीति भी होती रहती है, लेकिन आज तक भारत के किसी राज्य ने अपने लिए अलग झंडे की मांग कभी नहीं की. जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे भारत का एक ही झंडा है. तिरंगा झंडा, जिस पर पूरे हिंदुस्तान को गर्व है.लेकिन, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने अब राज्य के लिए अलग झंडा बनाने की पहल कर दी है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नौ सदस्यों की कमेटी बनाई है, जो रास्ता तलाशेगी कि क्या कानूनी तौर पर कर्नाटक के लिए अलग से स्टेट फ्लैग बनाया जा सकता है? कर्नाटक में वैसे लाल और पीले रंग के झंडे को कन्नड पहचान से जोड़कर देखा जाता है. गैर सरकारी तौर पर इसे कर्नाटक का अपना झंडा मानने वालों की भी कमी नहीं है और कर्नाटक के लोगों की इसी भावना को भुनाने के लिए बीजेपी की सरकार ने भी कर्नाटक में स्टेट फ्लैग का फॉर्मूला ढूंढा था.
इस पर सवाल उठा तो कर्नाटक सरकार को कबूल करना पड़ा कि संविधान के तहत कर्नाटक का अलग झंडा नहीं हो सकता. अलग झंडा होने से देश की एकता और अखंडता पर असर पड़ सकता है.
अब ये सवाल बड़ा हो गया है कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार राज्य के अलग झंडे की डिजाइन तय करने और उसे लागू कराने के लिए कमेटी बनाकर क्या साबित करना चाहती है? क्या सिद्धारमैया और कांग्रेस को पता नहीं है कि जम्मू-कश्मीर को आर्टिकल 370 के तहत विशेषाधिकार देने से वहां हालात कितने पेचीदा हैं..? कर्नाटक को भी कश्मीर बनाने की राजनीति क्यों हो रही है.