नई दिल्ली: अरब देशों को साधने के चक्कर में भारत ने 42 साल तक इज़रायल से कूटनीतिक रिश्ते नहीं बनाए और उसके बाद भी 25 साल तक अगर कोई बड़ा भारतीय नेता इज़रायल गया, तो साथ-साथ फिलीस्तीन का चक्कर भी लगाकर ही लौटा. लेकिन इज़रायल दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलीस्तीन नहीं जाएंगे.
मोदी सरकार की विदेश नीति में ये सबसे बड़ा बदलाव है. लिहाजा इज़रायल की जनता, वहां की सरकार मोदी की मुरीद बन गई है. इज़रायल से दोस्ती भारत के लिए ज़रूरी क्यों है ? भारत को अरब देशों की चिंता पहले थी, तो अब क्यों नहीं है.
जिस इज़रायल को मान्यता देने में भी भारत को करीब 18 महीने का वक्त लगा, जिसके साथ कूटनीतिक रिश्ते जोड़ने में भारत ने 42 साल सोच-विचार में गंवा दिए, वहां दो दिन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धूम मची हुई है.
मोदी से पहले भारत का कोई प्रधानमंत्री इज़रायल नहीं गया. बीते 17 साल में भारत के कई केंद्रीय मंत्री इज़रायल गए भी, तो उनका दौरा फिलीस्तीन का फेरा लगाए बिना पूरा नहीं हुआ, क्योंकि इज़रायल से रिश्ते बढ़ाकर भारत अरब देशों को नाखुश नहीं करना चाहता था.
मोदी की सरकार आने के बाद अरब देशों और इज़रायल के साथ भारत की कूटनीति में बड़ा फर्क आया है. प्रधानमंत्री मोदी ने इज़रायल दौरे के पहले ही दिन साफ-साफ कहा कि दोनों देशों के रिश्तों का फलक आसमान की सीमा से भी ज्यादा बड़ा है.
इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने सारे प्रोटोकॉल तोड़कर जिस गर्मजोशी के साथ हवाई अड्डे पर मोदी की अगवानी की, उससे पूरी दुनिया को ये संदेश मिल चुका है कि इज़रायल और भारत की दोस्ती कितनी गहरी है. प्रधानमंत्री मोदी ने इज़रायल दौरे पर कई बार ये बात खुलकर कही कि इज़रायल और भारत एक जैसे हैं. दोनों देशों की सोच एक जैसी है, चुनौतियां एक जैसी हैं और संकट भी एक जैसा ही है, आज इसी मुद्दे पर होगी महाबहस
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