नई दिल्ली: देश की राजनीति में इन दिनों भारतीय सेना और उसके अफसरों को अपशब्द कहने का फैशन सा चल पड़ा है. कोई आर्मी चीफ की तुलना जनरल डायर से कर रहा है, तो अब कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित के बयान पर बीजेपी आगबबूला है.
देश के नेताओं के लिए बड़ा आसान होता है कि पहले किसी को गाली दो, अपशब्द कहो और फिर बवाल मचे तो माफी मांग लो. गाली-गलौज की राजनीति पर अब किसी को हैरानी नहीं होती लेकिन जब गंदी राजनीति के दलदल में सेना और सेना प्रमुख को घसीटा जाए, तो देश हैरान से ज्यादा परेशान होता है.
भारतीय सेना इन दिनों बॉर्डर पर पाकिस्तान की गोलियों और देश में नेताओं की गालियों का एक साथ सामना कर रही है. आज भी पाकिस्तान की ओर से नौशेरा और पुंछ के कृष्णा घाटी सेक्टर में गोलाबारी हुई. सेना दुश्मनों की गोलियों का जवाब देना तो जानती है, लेकिन नेताओं की गालियों का जवाब वो कैसे दे ? नेताओं को ये बात समझ में नहीं आती, वरना कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत को सड़क छाप गुंडा कहने से पहले सौ बार सोचा होता.
फिलहाल संदीप दीक्षित के बयान पर राजनीति गरमाई हुई है. उन्होंने अपनी गलती मानते हुए माफी भी मांग ली है, लेकिन सवाल ये है कि क्या किसी को गाली देकर माफी मांग लेना ही काफी है ? ये सवाल इसलिए गंभीर हो गया है, क्योंकि पिछले 9 महीनों में सेना को बार-बार राजनीति के दलदल में घसीटा जा रहा है.
देश की राजनीति में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, जब विपक्ष के नेताओं ने प्रधानमंत्री पर शहीदों के खून की दलाली का आरोप लगाया हो. ये भी पहली बार हुआ, जब सेना से उसके पराक्रम का सबूत मांगा गया हो और ये भी पहली बार हुआ है, जब किसी नेता ने आर्मी चीफ को गुंडा तक कह दिया हो.
आर्मी चीफ को सड़क छाप गुंडा कहने की शर्मनाक राजनीति क्यों ? क्या किसी को गाली देकर माफी मांग लेना काफी है, आज इन्हीं सवालों पर होगी महाबहस.
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