‘सफर’

सड़क जिस पर वो भाग रहा है, अगर नहीं भागेगा तो वो सड़क भाग जायेगी। जिस खुले आसमान के नीचे वो भाग रहा है शायद वह आसमान हवा में गुल हो जायेगा। उसका छोटा बालक दौड़ा इस आशा के साथ कि परिवर्तन कर वो दशा और दिशा दोनों बदल पायेगा।

 

जीवन एक दर्शन है। विडम्बना है कि मनुष्य, समाज या देश इस विचित्र दर्शन को समझ नहीं पा रहा है। बड़ा जटिल प्रश्न है। कई बार समझ में आया भी परन्तु फिर एक नई जटिलता आ घेरती है। जैसे ही उस जटिल स्थिति को सुलझाने में व्यक्ति कामयाब होता है, उसी समय एक और जटिलता से सामना हो जाता है। प्रत्येक दर्शन का पटाक्षेप एक नये दर्शन से होता है।

आप भी सोच रहे होंगे कि माजरा क्या है। मैं एक के बाद दूसरा प्रश्न रखता जा रहा हॅू, बता नहीं रहा हॅू। पर करूं भी तो क्या करूं, मेरी खुद समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर करना क्या है और लिखना क्या है। ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे समाज को कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि करना क्या है और समझना क्या है और जाना कहां है और मंजिल कहां है। उसी तरह सरकार को भी बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार क्या सोच रही है और क्या हो रहा है। वो क्या समझा रही है और लोग क्या समझ रहे हैं।

आज सरकार करना क्या चाहती है और समाज से क्या कराना चाहती है। वह आखिर हर पखवाडे़ क्या बताना चाहती है। हर पखवाडे़ सरकार सामने आती है, बताती है और चली जाती है। सब सुनते हैं, परन्तु ऐसा क्या बताया कि हर सुनने वाले के कान में अलग-अलग समझ में आया। कोई कुछ सुनता है, कोई कुछ समझता है, कोई कुछ उस सुनने के आधार पर करता है और कोई कुछ उस समझने के आधार पर करता है। हर व्यक्ति का अपना प्रश्न है, प्रश्न वहीं खड़े हैं, उत्तर बगले झांक रहा है।

जिसका उत्तर इस पखवाड़े न मिला हो, उसका उत्तर अगले पखवाड़े तो मिल ही जायेगा। फिर अगर न मिले तो पिछले पखवाड़े से पूंछ लेना, शायद उसमें मिल जाये। और फिर भी उत्तर न मिले तो उससे भी पीछे वाले पखवाड़े में चले जाना। और इन तीनों में न मिले तो पहले पखवाड़े में चले जाओ, शायद उत्तर मिल जाये। यदि फिर भी उत्तर न मिले तो इन्तजार करो, पांचवा पखवाड़ा आता ही होगा, शायद उत्तर मिल जाये या समझ में आ जाये।

बहुतों को अभी तक उत्तर नहीं मिल सका है। उत्तर मिल गया होता तो क्यों भाग रहा होता, ठहर गया होता, परन्तु उत्तर नहीं मिल सका इसीलिये तो वो भाग रहा है, लगातार अनवरत वो दौड़ रहा है, और वो तब तक दौड़ता-भागता रहेगा जब तक उसको उत्तर नहीं मिल जायेगा। उसको तो ये भी नहीं पता कि आखिर वो भाग क्यों रहा है, मंजिल कहां है, परन्तु फिर भी भागे जा रहा है। किस बात का डर है, अन्देशा है पता नहीं, लेकिन भागे जा रहा है। क्या हो जायेगा उसे नहीं पता पर भागे जा रहा है।

उसे रूक कर सोचने का समय नहीं है कि इस पर विचार करे परन्तु फिर भी वो भागे जा रहा है। बिना विचार, बिना मंथन के भागे जा रहा है, दौड़े जा रहा है। शायद वह सड़क जिस पर वो भाग रहा है, अगर नहीं भागेगा तो वो सड़क भाग जायेगी। और अगर सड़क नहीं भी भागी तो जिस खुले आसमान के नीचे वो भाग रहा है शायद वह आसमान हवा में गुल हो जायेगा। वह चिलचिलाती धूप जिसमें वो नंगे पांव दौड़ा जा रहा है, अगर वो नहीं दौड़ेगा तो उसका साया अपने आप ही उस धूप में आगे-आगे दौड़ जायेगा। ये मनुष्य शायद अपने साये को पकड़ने के लिये दौड़ रहा है। मैंने बहुत गौर से देखने का प्रयास किया व समझने की कोशिश की परन्तु मध्याह्न दुपहरिया में उन दौड़ने वालों का साया मुझे कहीं नहीं दिखा तो आखिर वे क्यों दौड़े जा रहे हैं। सबने साथ छोड़ दिया, एक मालिक, एक खोली, एक नौकरी थी, और अब तो साये ने भी धीमे-धीमे कईयों का साथ छोड़ दिया। बिना साये कुछ तो कुछ कदम चले, फिर साया न देखकर वे भी निढाल हो वहीं लुढ़क पड़े। उसी तेज धूप में खुले आसमान के नीचे साया कहीं दूर उनको नीचे पड़ा देख रहा था, किंकर्तव्यविमूढ़ सा कुछ नहीं कर सकता था।

हर रोज एक पत्री आती थी, एक नया संदेश लेकर। वो सुखद क्षण उसको कभी नहीं मिला और वो लगातार उसी क्षण के लिये दौड़ता रहा नंगे पांव। वो दौड़े जा रहा था पर वो क्षण पकड़ न सका, पीछे-पीछे लगातार पिछड़ता जा रहा था। सांस उसकी उखड़ गयी थी, वो भी आखिर कब तक दौड़ता, थकता, हांफता, खांसता दौड़े जा रहा था, शरीर उसका भूख, प्यास से सूख गया था, पर वह दौड़े जा रहा था। बिना परवाह किये कि आखिर उसकी मंजिल कहां है पर नहीं, वह रूका नहीं था, शायद उसे अभिमान था कि वह भगवान वामन की तरह सिर्फ और सिर्फ तीन कदम में जमीन को नाप लेगा। और वह उसी जमीन को नापने लगातार दौड़े जा रहा था परन्तु सड़क की लम्बाई थी कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

बहुत सी पत्री चलती जा रही थी। इस टेबल से उस टेबल, इस बिल्डिंग से उस बिल्डिंग, इस वीर कर्मठ से उस वीर कर्मठ तक। परन्तु पत्री का पेट भी बहुत बड़ा था, पत्री के पेट की लम्बाई भी सड़क की लम्बाई की तरह खत्म ही नहीं हो रही थी, जिस पर वह बेचारा उस लम्बी सड़क पर दौड़े जा रहा था।

परिवर्तन पत्री किसी तरह आ भी गयी, समाचार भी सुन गया, फिर इन्तजार भी करता रहा कि वह परिवर्तन पत्री उस तक जरूर आयेगी, और करता रहा उस परिवर्तन के आने का इन्तजार और एक नई दशा और दिशा का इन्तजार करता रहा, पर वह परिवर्तन उस तक कभी नहीं पहुंचा और वह सड़क पर दौड़ता रहा। तब तक दौड़ता रहा जब तक साये ने उसका साथ नहीं छोड़ा। वह दशा और दिशा को बदलने के लिये बहुत देर दौड़ा, फिर थक कर टूट गया। उसका छोटा बालक उस मशाल और नये साये के साथ उठ पुनः दौड़ना शुरू किया, इस आशा के साथ कि परिवर्तन कर वह दशा और दिशा दोनों बदल पायेगा।

 

 

 

Aanchal Pandey

Recent Posts

स्कैम को रोकने के लिए उठाए कदम, 1 दिसंबर से लागू होगा ये नियम

इंटरनेट और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग के साथ-साथ साइबर स्कैम और ऑनलाइन फ्रॉड के खतरे…

6 hours ago

Meta ने 2 मिलियन से ज्यादा अकाउंट्स किए बंद, जानें क्या है Pig Butchering

Meta ने दो मिलियन से अधिक अकाउंट्स को बंद कर दिया है। इनमें Pig Butchering…

6 hours ago

प्रीति जिंटा का इस खिलाड़ी पर आया दिल, 18 करोड़ रुपए किए खर्च, नाम जानकर दंग रह जाएंगे

ऑक्शन के दौरान प्रीति जिंटा ने एक बूढ़े खिलाड़ी को अपने टीम का हिस्सा बना…

6 hours ago

Kalki 2898 सीक्वल: दीपिका पादुकोण के किरदार से उठा पर्दा, जानें आगे क्या होगी कहानी

साल 2026 में डायस्टोपियन फिल्म कल्कि 2898 एडी' का सीक्वल रिलीज होगा। फिल्म के पहले…

6 hours ago

सामंथा प्रभु ने शाहरुख खान के साथ काम करने से किया इंकार, नयनतारा ने मारी बाज़ी

सामंथा रुथ प्रभु को जवान फिल्म में पुलिस ऑफिसर का किरदार ऑफर किया गया था।…

7 hours ago

महिला के साथ जंगल में 11 दिन तक हुआ कुछ ऐसा… बाल-बाल बची जान, पढ़कर उड़ जाएंगे होश

साइबेरिया के इरकुत्स्क प्रांत के अलेक्सेव्स्क गांव की रहने वाली गैलिना इवानोवा ने अपनी जिंदगी…

8 hours ago