नई दिल्ली: हर वर्ष 8 मार्च की तारीख को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day 2023) मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी आजादी का दिल खोलकर जश्न मनाती हैं। यह दिवस को महिलाओं के सम्मान के लिए मनाया जाता है. लेकिन सवाल यह आता है कि इस दिन को सेलिब्रेट करने के पीछे की क्या कहानी और इसकी शुरुआत कैसे हुई थी. इन सवालो के साथ जुड़ी हुई है उन 15 हजार महिलाओं की कहानी जिन्होंने इस दिन को मनाने पर मजबूर कर दिया।
इस बात में शक नहीं है कि पहले के मुकाबले समाज में महिलाओं की स्थिति में कई सकारात्मक बदलाव आए है। वही शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के मामलों में न केवल महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है बल्कि बाल विवाह और कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों में भी कमी देखने को मिली हैं। हालांकि सामाजिक तौर पर लगातार जागरूकता फैलाने के बावजूद कुछ लोग अभी भी मौजूद है जिन्हें महिलाएं केवल घर संभालती ही अच्छी लगती हैं. उनकी माने तो पारिवारिक जिम्मेदारियों को ही महिलाओं के लिए उत्तम समझा गया है.
माना जाता है कि समाज में अभी भी कुछ लोगों का कहना है कि ज़्यादा पढ़ी-लिखी महिला अपने बराबर या कमतर लड़के को कभी भी अपना जीवन साथी बनाना पसंद नहीं करती। वह ना केवल मजबूत बाजुएं और मज़बूत बैंक बैलेंस देखती हैं बल्कि अपने पति की इज़्जत करना भी उन्हें ठीक नहीं लगता है. हालांकि, असल सच्चाई से हम सभी बेखबर है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि औरतों को वही आदमी सबसे अधिक भाते है, जो उन्हें तर्क के मामले में हरा देने में सक्षम हो.
दरअसल, इस मामले की शुरुआत साल 1908 में हुई थी. जहां अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 15 हजार औरतों ने सड़कों पर मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटे-बेहतर वेतन और मतदान के अधिकार की मांग को लेकर सामने आई थी और इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। साथ ही साथ कामकाजी महिलाओं की मांग थी कि उनकी नौकरी के काम के घंटे कम किए जाएं।
यह इसलिए हुआ क्योंकि महिलाओं से पहले 10-12 घंटे काम कराया जाता था, जिसको सुधार कर बाद में 8 घंटे कर दिया गया. बता दे, यह प्रदर्शन कई दिनों तक चला, जिसके लगभग एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस नियुक्त कर दिया.
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