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इंसान को अपने आखिरी पलों में सकारात्मक क्यों रहना चाहिए, जानें इस रिसर्च में

नई दिल्ली : ‘बाबू मोशाय…जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए’ यह डायलॉग तो जरूर सुना होगा आप ने। फिल्म आनंद में राजेश खन्ना का किरदार कैंसर से जूझता है। आनंद बहुत ही हिम्मत और मुस्कुराहट के साथ अपनी जिंदगी जीता है। कुछ लोग सोच रहे होंगे कि ऐसे मुश्किल वक्त में कोई कैसे खुश रह सकता है. यह सिर्फ एक फिल्मी कहानी है लेकिन असल जिंदगी भी कुछ हद तक इस सच्चाई के करीब है। जहां मुश्किलों के बीच भी उम्मीद और सकारात्मकता के लिए जगह है।

फिल्म आनंद

कैंसर से जूझ रहे और अपने जीवन के आखिरी दौर में पहुंचे साइमन बोस का 15 जुलाई को 47 साल की उम्र में निधन हो गया। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि “मेरा दर्द मेरे नियंत्रण में है और मैं बहुत खुश हूं। बेशक यह अजीब लग सकता है, लेकिन मैं अपनी जिंदगी में पहले से कहीं ज्यादा खुश हूं।” यह सुनकर अजीब लग सकता है कि कोई व्यक्ति मौत के करीब होने पर भी खुश रह सकता है, लेकिन एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के तौर पर मैंने पाया है कि यह कोई अनोखी बात नहीं है।

साइमन बोस

शोध के मुताबिक, लोग मौत के डर से लड़ने के लिए अपने आखिरी पलों में सकारात्मक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जैसे-जैसे कोई मौत के करीब पहुंचता है, जीवन के बारे में उसकी समझ विकसित होती है और लोग जीवन के हर पल को महत्व देने लगते हैं। मृत्यु से पहले जीवन के अर्थ को समझना

साइमन बोस ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी परिस्थिति को स्वीकार किया और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान केंद्रित किया। रोमन दार्शनिक सेनेका के शब्दों को दोहराते हुए उन्होंने कहा- जीवन कितना लंबा है, यह वर्षों पर नहीं, बल्कि हमारी सोच पर निर्भर करता है। मनोवैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकल ने भी अपने अनुभवों से साबित किया कि किसी भी स्थिति में जीवन में अर्थ खोजना महत्वपूर्ण है।

साधारण खुशियों का महत्व

एक अध्ययन में पाया गया कि मृत्यु के करीब पहुंचने वाले लोग सामाजिक संबंधों, प्रकृति की सुंदरता और साधारण खुशियों से अपनी खुशी प्राप्त करते हैं। जैसे-जैसे उनका स्वास्थ्य खराब होता है, उनका ध्यान खुशी से हटकर जीवन के अर्थ और संतुष्टि पर केंद्रित हो जाता है।

भावना कैसी होती है

मृत्यु के करीब पहुंचने पर लोग खुशी के साथ-साथ दुख, गुस्सा, पछतावा और संतुष्टि जैसी कई भावनाओं का अनुभव करते हैं। यह जीवन के प्रति एक नई समझ और दृष्टिकोण का संकेत देता है, जो उन्हें जीवन के अंतिम दिनों में भी खुशी का अनुभव करने की शक्ति देता है।यह समझ कि जीवन के अंत में भी शांति और संतुष्टि पाई जा सकती है, लोगों को अपने जीवन के अंतिम क्षण तक खुशी से जीने के लिए प्रेरित करती है।

 

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Manisha Shukla

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