आजकल Brain Rot शब्द तेजी से चर्चा में है। ऑक्सफोर्ड ने इसे 2024 का वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया है। यह शब्द उस स्थिति को दर्शाता है, जब स्मार्टफोन पर घंटों रील्स और वीडियोज देखने से मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन और एक ही तरह का कंटेंट कंज्यूम करने से स्ट्रेस लेवल बढ़ने लगता है।
नई दिल्ली: आजकल Brain Rot शब्द तेजी से चर्चा में है। ऑक्सफोर्ड ने इसे 2024 का वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया है। यह शब्द दरअसल ‘दिमाग का दही होना’ का नया वर्जन है, जिसे Gen-Z ने अपनाया है। 12 से 27 साल की उम्र के लोग, जो सबसे ज्यादा ऑनलाइन रहते हैं, इस शब्द को पॉपुलर बना रहे हैं।
यह शब्द उस स्थिति को दर्शाता है, जब स्मार्टफोन पर घंटों रील्स और वीडियोज देखने से मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन और एक ही तरह का कंटेंट कंज्यूम करने से स्ट्रेस लेवल बढ़ने लगता है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से हार्मोनल असंतुलन होता है, जिससे मोटापा, डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम और नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
AIIMS ने मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग पर चिंता जताते हुए सरकार को 10 से 16 साल तक के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाने की सलाह दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्टफोन के असीमित उपयोग से ‘Brain Rot’ के साथ-साथ शारीरिक समस्याएं, जैसे मोटापा और ऑटिज्म, भी बढ़ रही हैं।
युवा 24 घंटों में से औसतन 5-6 घंटे मोबाइल पर बिताते हैं। मोबाइल की लत के कारण 43% लोग नोमोफोबिया यानी मोबाइल खोने का डर और 25% फैंटम रिंगिंग यानी फोन बजने का आभास जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। इसके आठ ही गाड़ी चलाते समय मोबाइल के उपयोग से दुर्घटनाओं में चार गुना वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, मोबाइल के उपयोग को सीमित करना और डिजिटल डिटॉक्स अपनाना जरूरी है। स्क्रीन टाइम कम करने के साथ-साथ नियमित व्यायाम और ध्यान लगाने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।
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