नई दिल्ली : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पैसिव यूथेनेशिया यानी ऐसे लोगों का लाइफ सपोर्ट हटाने को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है जो गंभीर रूप से बीमार हैं और सिर्फ लाइफ सपोर्ट के सहारे जिंदा हैं। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी नई गाइडलाइन में डॉक्टरों से कहा गया है कि वे कुछ शर्तों को ध्यान में रखकर ही किसी मरीज का लाइफ सपोर्ट हटाने का फैसला ले सकते हैं।
इन चार शर्तों के आधार पर होगा फैसला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की नई गाइडलाइन में उन चार शर्तों का जिक्र है, जिनके आधार पर डॉक्टर यह फैसला ले सकते हैं कि बीमार व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट हटाना है या नहीं। पहली शर्त यह है कि मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हो। दूसरी शर्त यह है कि जांच में पता चले कि मरीज की बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच गई है और इस स्थिति में इलाज का कोई फायदा नहीं होगा। तीसरी शर्त यह है कि मरीज या उसके परिजनों ने लाइफ सपोर्ट जारी रखने से इनकार कर दिया हो। चौथी और आखिरी शर्त यह है कि लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइन के तहत की जानी चाहिए।
मसौदे में घातक बीमारी का भी जिक्र स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए नई गाइडलाइन में घातक बीमारी का भी जिक्र है। दरअसल घातक बीमारी एक लाइलाज स्थिति है, जिसमें निकट भविष्य में मृत्यु की संभावना बहुत अधिक होती है। घातक बीमारी में गंभीर मस्तिष्क की चोटें भी शामिल हैं, जिनमें 72 घंटे या उससे अधिक समय तक कोई सुधार नहीं दिखता।
नई गाइडलाइन के अनुसार, आईसीयू में ऐसे कई मरीज घातक रूप से बीमार हैं, जिनके लिए जीवन रक्षक उपचार से कोई लाभ मिलने की संभावना नहीं है। क्या कहा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन ने इस नई गाइडलाइन पर कहा कि ये गाइडलाइन डॉक्टरों को कानूनी जांच के दायरे में लाएगी और इससे उन पर तनाव बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि डॉक्टर हमेशा अच्छे इरादे से ऐसे क्लीनिकल फैसले लेते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करने से पहले डॉक्टर मरीज के परिजनों को स्थिति समझाते हैं और हर पहलू की जांच करने के बाद ही इस पर फैसला लेते हैं।
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