भारत में सदियों से अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं चली आ रही हैं। हालांकि कुछ रीति-रिवाज आज के आधुनिक समाज के लिए खतरनाक और अस्वीकार्य हो गए हैं, लेकिन कुछ इलाकों में आज भी उनकी जड़ें हैं।
नई दिल्ली : भारत में सदियों से अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं चली आ रही हैं। हालांकि कुछ रीति-रिवाज आज के आधुनिक समाज के लिए खतरनाक और अस्वीकार्य हो गए हैं, लेकिन कुछ इलाकों में आज भी उनकी जड़ें हैं। ऐसी ही एक खतरनाक प्रथा शहडोल जिले में देखने को मिलती है, जहां बीमारियों के इलाज के नाम पर बच्चों को लोहे की गर्म छड़ों से दागने की प्रथा प्रचलित है। यह प्रथा न केवल बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करती है, बल्कि इसका गंभीर मानसिक और भावनात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
लोहे की गर्म छड़ों से दागने की प्रथा, जिसे स्थानीय भाषा में ‘लोहा लगाने’ या ‘तंत्र-मंत्र’ के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, जिसे कुछ आदिवासी इलाकों में अपनाया जाता है। शहडोल जैसे जिलों में मान्यता है कि जब कोई बच्चा तेज बुखार, मलेरिया या अन्य संक्रामक बीमारी से पीड़ित होता है, तो उसे ठीक करने के लिए उसके शरीर को लोहे की गर्म छड़ों से दागा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे बच्चे के शरीर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा या बीमारी का असर खत्म हो जाएगा और बच्चा जल्दी ठीक हो जाएगा।
इस प्रक्रिया में लोहे की छड़ को आग में गर्म किया जाता है और फिर बच्चे की त्वचा पर दागा जाता है। यह प्रक्रिया बहुत दर्दनाक होती है और कई बार गंभीर जलन, घाव और संक्रमण का कारण बनती है। कुछ जगहों पर इसे ‘शरीर से बीमारी निकालने’ के तरीके के तौर पर देखा जाता है, हालांकि मेडिकल दृष्टिकोण से यह एक खतरनाक तरीका है। कई बार तो गर्म छड़ से दागे जाने के कारण बच्चे की मौत भी हो जाती है। समय-समय पर इसका विरोध किया जाता रहा है, फिर भी यह प्रथा आज भी जारी है।
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