नई दिल्ली: खाने पिने की चीजों में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक (प्लास्टिक के बारीक कण) का पता लगाने के लिए FSSAI ने एक प्लान तैयार किया है. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने गंभीरता दिखते हुए इस पर कार्रवाई करने की योजना बनाई है।
आपको बता दें कि हाल ही में टॉक्सिक लिंक द्वारा किए गए एक अध्ययन में देश में सभी प्रकार के नमक और चीनी के ब्रांड में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है। इस खुलासे के बाद FSSAI ने खाद्य पदार्थों में इस खतरनाक रसायन के कणों से जनता को बचाने (खाद्य सुरक्षा) के लिए एक कार्ययोजना बनाने का फैसला किया है। नमक और चीनी के हर नमूने में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। इस अध्ययन में टेबल सॉल्ट, रॉक सॉल्ट, सी सॉल्ट, लोकल सॉल्ट समेत करीब दस तरह के नमक की जांच की गई। इसके साथ ही पांच तरह की चीनी की भी जांच की गई जो ऑनलाइन और स्थानीय बाजार से खरीदी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे। माइक्रोप्लास्टिक इन खाद्य पदार्थों में फाइबर, छर्रों, फिल्मों और टुकड़ों के रूप में मौजूद होते हैं। इन सूक्ष्म प्लास्टिक कणों का आकार 0.1 मिमी से लेकर 5 मिमी तक था।
इस अध्ययन को गंभीरता से लेते हुए FSSAI ने खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म प्लास्टिक का पता लगाने और इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्ययोजना पर काम करने की घोषणा की है। इस योजना के तहत खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म-नैनो-प्लास्टिक की मौजूदगी का विश्लेषण कर इसके लिए एक मानक प्रोटोकॉल तैयार किया जाएगा।
इस योजना में इंट्रा और इंटर प्रयोगशालाओं में खाद्य पदार्थों की तुलना करना और लोगों को सूक्ष्म प्लास्टिक के खतरों के बारे में बताने के लिए अभियान चलाना भी शामिल है। आपको बता दें कि खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को देखते हुए CSIR, ICAR, भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान लखनऊ, केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान कोच्चि और बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान पिलानी द्वारा एक संयुक्त अध्ययन भी किया जा रहा है।
इस अध्ययन के आधार पर FSSAI यह सुनिश्चित करेगा कि देश के नागरिकों को स्वस्थ और उचित भोजन मिले। इस अध्ययन और प्रोजेक्ट की मदद से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म प्लास्टिक के स्तर और भूमिका के बारे में विश्वसनीय डेटा तैयार किया जाएगा। इस नई योजना से भारतीय खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की सीमा को समझने की कोशिश की जाएगी और इसके जरिए भारतीयों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए नियम और कानून तैयार किए जा सकेंगे।
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