इस्लाम में धार्मिक रूप से केवल दो प्रमुख उत्सव मनाए जाते हैं, ईद-अल-फितर और ईद-उल-अजहा। इसके अलावा, इस्लाम में किसी भी प्रकार के नववर्ष या अन्य उत्सवों को मनाना नवाचार माना जाता है, जिसे धर्म में सख्त रूप से मना किया गया है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज में नए साल का जश्न मनाना आम बात नहीं है।
नई दिल्ली : क्रिसमस के बाद अब दुनिया भर में नए साल के जश्न का माहौल है, लेकिन मुस्लिम समाज के लिए नया साल कब आता है, यह सवाल अक्सर उठता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, मुस्लिम समाज अपने नववर्ष की शुरुआत मुहर्रम महीने से करता है, जो हिजरी कैलेंडर का पहला महीना होता है। यह कैलेंडर चंद्रमा की चाल पर आधारित है, जिससे वर्ष का कुल समय 354 या 355 दिन होता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर से लगभग 11 दिन छोटा है।
इस्लाम में धार्मिक रूप से केवल दो प्रमुख उत्सव मनाए जाते हैं, ईद-अल-फितर और ईद-उल-अजहा। इसके अलावा, इस्लाम में किसी भी प्रकार के नववर्ष या अन्य उत्सवों को मनाना नवाचार माना जाता है, जिसे धर्म में सख्त रूप से मना किया गया है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज में नए साल का जश्न मनाना आम बात नहीं है। वे ईसाई धर्म के त्योहारों को भी नहीं मनाते हैं, और कुछ मुसलमान तो पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन (ईद-मिलादुन-नबी) को भी उत्सव के रूप में नहीं मनाते।
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम महीना बहुत पवित्र और शोक का समय होता है। इस महीने की दसवीं तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसे शिया मुसलमान शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन को आशूरा के नाम से जाना जाता है, और शिया मुसलमान इस दिन पर विशेष रूप से शोक जुलूस और प्रार्थना करते हैं। वहीं, सुन्नी मुसलमान भी इस दिन उपवास रखते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य मदीना में पैगंबर मोहम्मद द्वारा किए गए उपवास का सम्मान करना होता है।
इस्लामिक कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर में बड़ा अंतर होता है। जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर में 1 जनवरी को नया साल मनाया जाता है, इस्लामी कैलेंडर में नया साल मुहर्रम महीने से शुरू होता है। इस्लाम में नए साल पर जश्न नहीं मनाया जाता, और मुसलमान ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहकर बधाई नहीं देते।
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