नई दिल्ली: इंटरमिटेंट फास्टिंग हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो रही है। हाल ही में हुई रिसर्च में यह पाया गया है कि जो लोग हाई ब्लड प्रेशर, उच्च शुगर स्तर, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और चयापचय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग […]
नई दिल्ली: इंटरमिटेंट फास्टिंग हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो रही है। हाल ही में हुई रिसर्च में यह पाया गया है कि जो लोग हाई ब्लड प्रेशर, उच्च शुगर स्तर, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और चयापचय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग एक प्रभावी उपाय हो सकता है। इस प्रक्रिया में, खाने की अवधि को केवल 10 घंटों तक सीमित रखा जाता है और इसे तीन महीनों तक अपनाने से काफी सुधार देखा जा सकता है।
यूसी सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन की एक शोधकर्ता डॉ. एमिली मनूगियन के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में बताया गया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग न केवल ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायक है, बल्कि यह पहले से दवाइयां ले रहे लोगों के लिए भी कारगर साबित हो सकता है। यह फास्टिंग चयापचय सिंड्रोम, प्रीडायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और बढ़े हुए वजन जैसी कई स्वास्थ्य समस्याओं में सुधार लाने में मदद कर सकती है।
शोधकर्ताओं ने मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित 108 वयस्कों पर अध्ययन किया, जिनमें 51% महिलाएं थीं और औसत उम्र 59 वर्ष थी। वहीं इसके परिणामस्वरूप पाया गया कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से हृदय रोग और स्ट्रोक का जोखिम कम हुआ और वजन नियंत्रण में भी मदद मिली। खाने के बीच लंबे अंतराल से शरीर का चयापचय बेहतर होता है, जिससे ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहते हैं।
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