नई दिल्ली: आजकल युवाओं में कोल्हापुरी चपप्लों का ट्रेंड काफी देखा जा रहा है. दरअसल कोल्हापुरी चप्पल का फैशन ऐसा है, जो कभी आउट नहीं होता. भारतीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले विदेशी पर्यटक भी कोल्हापुरी चप्पलों को खासा पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं भारतीय पहनावे को बढ़ावा देने वाली कोल्हापुरी चप्पल13वीं सदी की शुरुआत से पहनी जा रही हैं. कोल्हापुरी चप्पल दुनिया के 8 देशों में निर्यात की जाती है.
गौरतलब है कि कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र के कोल्हापुर में विशेष रूप से तैयार की जाती है. इसी वजह से इसका नाम कोल्हापुरी चप्पल पड़ा है. आज भी फैशन में ट्रेंड मानी जाने वाली ये चप्पल 13वीं सदी की शुरुआत से पहनी जा रही हैं. 20वीं सदी से पहले कोल्हापुर के जिस गांव में इन चप्पलों को बनाया जाता था उसी गांव के नाम इनका नाम रखा जाता था. उस समय इन चप्पलों के नाम कपाशी, पायटन, कचकड़ी, बक्कलनवी और पुकारी जैसे थे. हालांकि, साल 1920 में एक कारोबारी ने कोल्हापुरी चप्पल को नए डिजाइन में बनाया. कानों की तरह बेहद पतली होने के कारण इन्हें कनवली नाम भी दिया गया जिसे बाद में कोल्हापुरी नाम से जाना जाने लगा.
उसी दौरान दक्षिणी मुंबई के जेजे रिटेल स्टोर एंड संस पर बिकने के लिए आईं कोल्हापुरी चप्पल लोगों को पहली नजर में भा गई और लोगों ने उस समय फुटवियर की इस स्टाइल को बहुत पसंद किया जिसके बाद लोगों में इसकी मांग बढ़नी शुरू हो गई. बता दें कि कोल्हापुरी चप्पल भारत के अलावा भी दुनिया के 7 देशों में निर्यात भी की जाती हैं. कोल्हापुरी चप्पल ज्यादातर कोल्हापुर, मीरज, सतारा आदि जगहों से बना कर कारीगर मुंबई में जाकर बेचते हैं. अगर आकंडों की माने तो देश में लगभग 25 लाख लोग इसके कारोबार से जुड़े हुए हैं.
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