क्या सोशल इंटरैक्शन में होती है परेशानी, तो आप हो सकते है इस डिसऑर्डर शिकार

नई दिल्ली: ऑटिज्म, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) भी कहा जाता है, एक ऐसी न्यूरो-डेवलपमेंटल स्थिति है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, संचार और सोचने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह डिसऑर्डर व्यक्ति में बचपन से ही हो जाता है, जो जीवनभर उनमें रहता है। हर व्यक्ति में ऑटिज्म के लक्षण अलग-अलग के हो सकते है, जिससे इसे “स्पेक्ट्रम” कहा जाता है।

ऑटिज्म क्या है और क्यों होता है?

ऑटिज्म होने का कारण अब तक साफ तौर पर पूरी तरह सामने नहीं आ पाया है. हालांकि रिसर्चर का मानना है कि यह जेनेटिक और आस पास के वातावरण का मेल हो सकता है।

ऑटिज्म के लक्षण:

ऑटिज्म के लक्षणों की व्यापकता के कारण इसे पहचानना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं

1. सोशल इंटरैक्शन में कठिनाई

2. संचार में समस्याएं

3. दोहरे व्यवहार

ऑटिज्म के मामलों की स्थिति और इसे कम करने के उपाय

भारत में ऑटिज्म के मामलों की सही संख्या का पता लगाना कठिन है, लेकिन अनुमान के हिसाब से 1000 बच्चों में से 1-2 बच्चे ऑटिज्म से प्रभावित होते हैं। हाल के वर्षों में ऑटिज्म के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका कारण ऑटिज्म की बेहतर पहचान और जागरूकता भी हो सकता है। ऑटिज्म का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कुछ उपचार को अपनाया जा सकता हैं.

ऑटिज्म का उपचार

1. व्यवहार चिकित्सा (Behavioral Therapy): एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (ABA). इसमें बच्चों को सकारात्मक व्यवहार सिखाया जाता है।

2. भाषा और संचार चिकित्सा (Speech and Communication Therapy): बोलने और संवाद करने की क्षमता को सुधारने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग।

3. सेंसररी इंटीग्रेशन थेरेपी (Sensory Integration Therapy): संवेदनाओं के प्रति बच्चों के रिएक्शंस को संतुलित करने के लिए उन्हें ट्रेन किया जाता है।

4. माता-पिता और शिक्षक प्रशिक्षण: माता-पिता और शिक्षकों को ऑटिज्म के लक्षणों को समझने और उनका सामना करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

5. सपोर्टिव टेक्नोलॉजी: ऑगमेंटेटिव एंड अल्टरनेटिव कम्युनिकेशन (AAC) डिवाइसेस का उपयोग, जो बात करने में मदद करते हैं।

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