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Gandhi A Political Love Story Book Review: गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी – उपन्यास या विवादों का पिटारा ?

Gandhi A Political Love Story Book Review: सियासी सफर की उसकी दास्तां पॉजिटिव पॉलिटिक्स से शुरू होकर प्रैक्टिल पॉलिटिक्स के रास्ते चलती हुई पतित पॉलिटिक्स के दरवाजे तक पहुंचती है । विदेशी बाला से उसके इश्क विश्क की दास्तां देसी अंदाज में चंद्रमुखी से शुरू होकर सूर्यमुखी के रास्ते चलती हुई ज्वालामुखी तक पहुंचती है । प्यार और पॉलिटिक्स का ये दिलचस्प सफर उपन्यास में आधी हकीकत, आधा फसाना के फ्लेवर में मौजूद है.

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Gandhi A Political Love Story Book Review
  • July 20, 2020 7:46 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

कवर पेज पर देश की संसद, संसद के आगे खड़ा एक शख्स जिसका चेहरा नहीं दिख रहा है लेकिन पीछे से देखने पर भी उसकी आकृति विपक्ष के एक बड़े नेता से काफी हद तक मिल रही है । उस शख्स के आगे है अथाह नीला समंदर और समंदर के उस पार है नीली आंखों वाली एक खूबसूरत विदेशी बाला ! ये शशि कांत मिश्र के नये उपन्यास ‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’ की पहली झलक है और पहली झलक सामने आते ही ये नॉवल विवादों के घेरे में आ गया है । सवाल उठ रहा है कि क्या ये नॉवल देश के एक बड़े सियासी शख्स को केंद्र में रखकर लिखा गया है ? हर उपन्यास की तरह इस उपन्यास में भी डिस्क्लेमर की औपकारिता निभाई गई है जिसमें दावा किया गया है कि यह उपन्यास पूरी तरह काल्पनिक है और इसका किसी व्यक्ति विशेष या घटना विशेष से रिश्ता नहीं है लेकिन उपन्यास के नाम और कवर पेज को देखकर आप खुद तय कर सकते हैं कि इस दावे में कितना दम है ? खुद इस बारे में लेखक का कहना है -“उपन्यास का नाम ‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’ रखने की सबसे बड़ी वजह मार्केटिंग है । मार्केटिंग का सबसे कामयाब फंडा है-जो दिखता है, वही बिकता है । मेरी भी दिली चाह है कि मेरा उपन्यास लोगों को दिखे, खूब बिके । इसीलिए मैंने ये नाम रखा है । दूसरी और कोई वजह नहीं है । ”

लेखक की साफगोई अपनी जगह लेकिन उपन्यास का कथानक कुछ और कहानी बयां कर रहा है । उपन्यास की भूमिका में ही कथानक के बारे में जो कुछ लिखा गया है, वो इशारा कर रही है कि कहानी केवल वही नहीं है जो दिख रही है, बल्कि उस कहानी के अंदर भी एक कहानी है-‘कहानी हिंदुस्तान के सियासी राजकुमार मुकुल गांधी की है । अभिशप्त राजकुमार डेमोक्रेटिक मूड मिजाज का है । सीधा, सादा, सरल, संस्कारी । वो साजिश वाली सियासत से सात हाथ दूर रहता है । सात समंदर पार की अपनी राजकुमारी के साथ एक सामान्य जिंदगी जीना चाहता है लेकिन पारिवारिक विरासत और मोहब्बती टर्म एंड कंडीशन के फेर में फंसकर उसे राजनीतिक चक्रव्यूह में उतरना पड़ा । सियासी सफर की उसकी दास्तां पॉजिटिव पॉलिटिक्स से शुरू होकर प्रैक्टिल पॉलिटिक्स के रास्ते चलती हुई पतित पॉलिटिक्स के दरवाजे तक पहुंचती है । विदेशी बाला से उसके इश्क विश्क की दास्तां देसी अंदाज में चंद्रमुखी से शुरू होकर सूर्यमुखी के रास्ते चलती हुई ज्वालामुखी तक पहुंचती है । प्यार और पॉलिटिक्स का ये दिलचस्प सफर उपन्यास में आधी हकीकत, आधा फसाना के फ्लेवर में मौजूद है ।’

एक पत्रकार के तौर पर पिछले चार लोकसभा चुनाव को कवर कर चुके शशिकांत मिश्र ने अपने उपन्यास में जिस ‘आधी हकीकत, आधा फसाना के फ्लेवर’ का दावा किया है, वो काफी हदतक सही लग रहा है । उपन्यास में पिछले 20 साल की जिन राजनीतिक प्रसंगों का जिक्र किया गया है, वो काल्पनिक होते हुए भी तथ्यों पर आधारित दिख रहा हैं । शायद उपन्यास के इसी पहलू को लेखक आधी हकीकत कह रहे हैं और ‘आधा फसाना’ उपन्यास का वो भाग हो सकता है जहां नायक और उसकी विदेशी प्रेमिका के प्रेम प्रसंग हैं ।

लेखक आधी हकीकत, आधा फसाना की आड़ में अपनी बात रख रहे हैं लेकिन उपन्यास के कवर पेज और नाम को लेकर साफ साफ कुछ कहने से बच रहे हैं । बस इशारों इशारों में अपनी बात रख रहे हैं –‘उपन्यास के नायक मुकुल के उपनाम ‘गांधी’ को लेकर अच्छी खासी भसड़ मची हुई है, नायक मुकुल के नाम का जिक्र तक नहीं हो रहा है ! वाकई शेक्सपियर साहब ने सही कहा है गुलाब को किसी नाम से पुकारो, क्या फर्क पड़ता है ? लेकिन उपनाम से बहुत फर्क पड़ता है । हिंदुस्तान में तो और ज्यादा पड़ता है । दो अक्षर का गांधी दस दशक की हिंदुस्तानी सियासत पर हावी है । सियासत के बाद साहित्य की दुनिया में इस उपनाम को भुनाने की जुर्रत कर रहा हूं । खतरा बड़ा है लेकिन बिग रिस्क, बिग गेन ! क्या पता मेरे बहाने मुकुल की ‘मन की बात’ खुलकर दुनिया जहां के सामने आ सके ।’

लेखक शशिकांत मिश्र ने ‘दो अक्षर का गांधी दस दशक की हिंदुस्तानी सियासत पर हावी है’ वाली जो बात कही है, वो भी कई तरह के अटकलों को जन्म दे रही है । गांधी शब्द सुनते ही हर किसी के जेहन में सबसे पहले महात्मा गांधी का नाम सामने आता है लेकिन उपन्यास के कवर पेज पर लगी तस्वीर को देखकर कोई भी समझ जायेगा कि ये उस ‘गांधी’ की बात नही है । तो फिर सवाल उठता है कि ये नया ‘गांधी’ कौन है ? सवाल कुछ और हैं लेकिन सारे सवालों का सटीक जवाब जिन शशि कांत मिश्र के पास है, वो अभी अपने पत्ते पूरी तरह खोलने के लिए तैयार नहीं है ।

लेखक के पहले दोनों उपन्यास-‘नॉन रेजिडेंट बिहारी’ और ‘वैलेंटाइन बाबा’ भी काफी चर्चित रहा है । उनका ये तीसरा उपन्यास भी प्रकाशित होने के साथ सुर्खियों में है और इसकी बड़ी वजह उपन्यास का कवर पेज और नाम है । उपन्यास अमेजन किंडल पर उपलब्ध है और कीमत 100 रूपया है.

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