मंगल पर मिले पानी के पक्के सबूत, जीवन मिलने की संभावनाएं बढ़ी

पेरिस. मंगल ग्रह पर भविष्य में बस्तियां बसाने की कल्पना अब केवल कथा कहानियों तक सिमट कर नहीं रहेगी क्योंकि मंगल ग्रह की सतह पर पानी तरल अवस्था में देखा गया है जो जीवन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके साथ ही ऐसी संभावनाएं बढ़ गयी हैं कि मंगल पर जीवन मिल सकता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सोमवार को यह जानकारी दी.
नासा के खगोलीय विज्ञान विभाग के निदेशक जिम ग्रीन ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया, ‘मंगल एक सूखा और बंजर ग्रह नहीं है जैसा कि पहले सोचा जाता था.’ उन्होंने कहा, ‘कुछ निश्चित परिस्थितियों में पानी तरल अवस्था में मंगल पर पाया गया है.’ वैज्ञानिक लंबे समय से यह अनुमान लगाते आ रहे थे कि कभी लाल ग्रह पर जीवन था. नासा ने कहा है कि तरल अवस्था में जल मिलने से यह संभव है कि वहां इस समय जीवन हो.
नासा के विज्ञान अभियान निदेशालय के सहायक प्रशासक और अंतरिक्ष वैज्ञानिक जॉन ग्रुंसफेल्ड ने बताया, ‘इसके बारे में सर्वाधिक रोमांचित करने वाली बात यह है कि मंगल के बारे में हमारा प्राचीन नजरिया और मंगल पर जीवन की संभावना, मंगल पर पूर्व में जीवन के बारे में रसायनिक जीवाश्म की खोज के बारे में रही है.’ उन्होंने कहा, ‘मंगल पर तरल अवस्था में जल की मौजूदगी, भले ही यह बेहद खारा पानी हो… यह इस बात की संभावना पैदा करता है कि यदि मंगल पर जीवन है तो हमें यह बताने के लिए एक रास्ता मिला है कि यह जीवन वहां कैसे बना रहा.’
जॉन ने कहा कि मंगल ग्रह पर भविष्य में और मिशन भेजे जाने की पहले से ही योजना है लेकिन अब इस नयी खोज ने इस सवाल को ठोस आकार दे दिया है कि क्या इस ग्रह पर जीवन है और हम इस सवाल का जवाब दे सकते हैं.’ मंगल पर जल की मौजूदगी से मंगल पर मानव अभियान भेजना आसान हो जाएगा जिसे वर्ष 2030 तक भेजने की नासा की योजना है. ग्रुंसफेल्ड ने कहा, ‘सतह पर जिंदा रहने के लिए वहां संसाधन हैं.’ उन्होंने कहा कि पानी महत्वपूर्ण है लेकिन ग्रह पर अन्य महत्वपूर्ण तत्व भी हैं जैसे कि नाइट्रोजन जिसका इस्तेमाल ग्रीनहाउस में पौधो को उगाने के लिए किया जा सकता है.
मंगल पर पानी की मौजूदगी की यह घोषणा ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘द मार्सियन’ के रिलीज होने से पूर्व हुई है. इस फिल्म में मैट डेमोन मंगल ग्रह पर करीब एक महीने बिना भोजन के मरने के लिए छोड़ दिए जाने के बाद खुद को जिंदा रखते हैं. वैज्ञानिकों का लंबे समय से मानना रहा है कि कभी लाल ग्रह पर पानी बहता था और इसी से वहां घाटियां और गहरे दर्रे बने लेकिन तीन अरब साल पहले जलवायु में आए बड़े बदलावों के चलते मंगल का सारा रूप बदल गया.
ग्रीन ने कहा, ‘आज हम इस ग्रह के बारे में अपनी समझ को क्रांतिकारी आकार दे रहे हैं. हमारे रोवर्स ने पता लगाया है कि वहां हवा में कहीं अधिक आद्र्रता है.’ इस ग्रह की सतह की खोज में जुटे रोवर्स ने यह भी पाया है कि इसकी मिट्टी पहले लगाए गए अनुमानों से कहीं अधिक नम है. मंगल की सतह पर चार साल पहले ढलानों पर गहरे रंग की रेखाएं देखी गयी थीं. वैज्ञानिकों के पास इसके सबूत नहीं थे लेकिन बाद में पाया गया कि ये रेखाएं गर्मियों में बढ़ जाती थीं और उसके बाद सर्दियां आते आते गायब हो जाती थीं. अब पता चला है कि ये असल में पानी की धाराएं हैं. लेकिन अब इसके सावधानीपूर्वक अध्ययन और विश्लेषण के बाद वैज्ञानिक यह कहने को तैयार हैं कि ये रेखाएं वास्तव में जल धाराएं हैं.
एजेंसी
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