योग की मदद से जानिए सांस लेने का सही तरीका

नई दिल्ली: ये सौ प्रतिशत सच बात है कि अगर आखिर तक कोई हमारे साथ है तो वो हमारी सांसे ही हैं. सांसे खत्म तो हम भी खत्म, लेकिन हैरानी की बात ये हैं कि हम अपने इस जीवनदायिनी साथी से क़रीब-क़रीब अपरिचित ही रह जाते हैं.
यहां तक कि हम ये नहीं जानते कि कैसे ली जानी चाहिए सांसें और कैंसे हमारी सांसें हमारे मन, हमारी भावना, हमारी ऊर्जा और हमारे सेहत को प्रभावित करती है.आज आपको योग गुरू धीरज वशिष्ठ बताएंगे नाभि, सांसे और लाफिंग बुद्धा का रहस्य और इसके साथ ही बताएंगे किस तरह से लेनी चाहिए सांस और कपाल भारती करने का सही तरीका…
नाभि है प्राण ऊर्जा का केंद्र-
योग और तंत्र साधना में नाभि यानि मणिपुर स्थल को सांसों का केंद्र माना गया है. यही वजह है कि नाभि को प्राण ऊर्जा का भंडार बताया गया। योग 72,000 नाड़ियों की बात कहता है, जिससे होकर प्राण गति करती है, हमें हरा-भरा रखती है। ये हज़ारों नाड़ियां हमारे नाभि से आकर जुड़ी रहती हैं. मां के गर्भ में नाभि के जरिए ही हम अपनी जीवन ऊर्जा पाते हैं और हमारे जन्म के बाद भी नाभि ही ऊर्जा का केंद्र बना रहता है.
नाभि, सांसें और लाफिंग बुद्धा-
लाफिंग बुद्धा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. लाफिंग बुद्धा को घरों में रखने से लेकर गिफ्ट करने का प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है. आपने कभी सोचा है कि लाफिंग बुद्धा के पेट को बड़ा क्यों दिखाया गया है ? दरअसल पेट का बड़ा होना इशारा है कि प्राण और जीवन ऊर्जा का स्तोत्र नाभि है. भगवान गणेश के पेट को भी बड़ा कर के दिखाया गया है, मतलब ये नहीं कि वो बहुत भोजनप्रिय हैं। वो इशारा है कि हमारी ऊर्जा का भंडार है नाभि. लाफिंग बुद्धा हमें कह रहा है कि जितना हम नाभि से जुड़ जाएं, हमारी सांसें जितनी नाभि से होती हुई आएं, उतना ही हमारा जीवन आनंदमय और हंसता हुआ हो जाएगा.
कैसे लें सही तरह से सांसें ?
आपने कई बार महसूस किया होगा कि छोटे बच्चें दिनभर भागदौड़ मचाए रहतें हैं, लेकिन थकान उन्हें नहीं आती. आप उनके साथ भागे तो आप थक जाएं, लेकिन वो इस दौड़ का मज़ा लेते रहतें हैं. शारीरिक रुप से हम छोटे बच्चों से मजबूत हैं, लेकिन आख़िर फिर ऐसी कौन-सी बातें हैं जो हमें उनकी तरह ऊर्जावान नहीं रख पाती ? आपने अक्सर ध्यान दिया होगा कि जब बच्चे सो रहें होते हैं, तो उनकी सांसों की गति के साथ उनका पेट फूलता-सुकड़ता है. बच्चें सांस पेट के जरिए लेते हैं, जबकि हम बड़े लोग सांस लेते हुए छाती फूलाते-सुकड़ाते हैं. बच्चे की सांस नाभि से होती आती है और यहीं उनकी भरपूर ऊर्जा का रहस्य है, और यही सांस लेने का सही तरीका है.
गायकों के मामले में हम ये सुनते आएं हैं कि उनका स्वर गले से नहीं नाभि से निकलता है. दरअसल हमें जब भी कुछ कहना या गाना होता है तो हमारी सांसें बाहर होती हैं. सांस को लेते हुए हम कुछ कह या गा नहीं सकते. जब हमारी सांसें नाभि से होते हुए जाती है तो वो देर तक छूटती है और इसतरह हम स्वर को ऊंचा कर सकते हैं. ऐसे में अगर आपको स्वर बेहतर करना हो तो नाभि से सांसें लेना शुरु कर दें, यानी एब्डोम्निल ब्रीदिंग, जब सांस लें तो पेट फूले और सांस छोड़ते हुए पेट अंदर की ओर जाए.
कपालभाति प्राणायाम का कमाल-
कपालभाति प्राणायाम भी एब्डोम्निल ब्रीदिंग हैं, बस इसमें सांसों की गति तेज या फोर्स गति की है. कपालभाति प्राणायाम का हर दिन अभ्यास हमें नेचरल सांस लेने की प्रक्रिया से जोड़ता है. हां, अगर आप हाई ब्लडप्रेशर या हार्ट और अस्थमा जैसी किसी भी परेशानी से पीड़ित हैं, तो कपालभाति प्राणायाम आप के लिए सही नहीं हो सकता. ऐसे में उपर दिए गए वीडियो की तरह धीमी गति से की जाने वाली एब्डोम्निल ब्रीदिंग करें.
कपालभाति करने का सही तरीका-
साफ है, जब कभी आप तनाव में हो तो आप अपने सांसों को नाभि की ओर ले जाना ना भूलें. जैसे-जैसे आप नाभि से सांस लेना शुरु करेंगे वैसे-वैसे आप मन के तल से पहले इंद्रियों के तल और फिर ज्यादा गहरे अपने आत्मिक तल से जुड़ाव महसूस करेंगे. नाभि है आपकी ऊर्जा का केंद्र. यकीन ना आएं तो हर दिन बस 10 मिनट आप अपनी सांसों को नाभि से होकर होशपूर्वक गुजारे और महज कुछ पल में आपके अंदर की शांति ही अलग होगी.
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