नई दिल्ली. विश्व स्वास्थय संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति एक हजार में से दस बच्चे किसी न किसी जेनेटिक डिसऑर्डर की बीमारी के साथ पैदा होते हैं. हालांकि, कोई माता पिता नहीं चाहते कि उनके बच्चे किसी किस्म की जेनेटिक बीमारी के साथ पैदा हों.
इस बारे में इजेनोमिक्स ने हाल ही में एक रिसर्च किया है, जिसमें कहा गया है कि 138 में 6 फीसदी जोड़ों के बच्चे किसी न किसी किस्म के जेनेटिक डिसऑर्डर की बीमारी से गुज़र रहे हैं. इजेनोमिक्स की डॉक्टर रजनी का कहना है कि करीब 17 फीसदी जोड़ों के बच्चे हाई रिस्क जेनेटिक डिसऑर्डर के शिकार पाए गए हैं.
डॉक्टर रजनी के मुताबिक, किसी किस्म का जेनेटिक डिसऑर्डर खतरनाक होता ही है, साथ ही मुश्किल से ठीक होने वाला भी होता है. रिसर्च में कहा गया है कि कॉनजेनिअल मैरिज में तो इस बीमारी का रिस्क और ज़्यादा है. उन्होंने कहा है कि हेल्दी बच्चे पैदा करने के लिए ज़रूरी है कि रचनात्मक उपाए ढूंढ़े जाएं.
इस मामले में कंपैटिबिलिटी जेनेटिक डिसऑर्डर (सीजीटी) के जरिए इस बीमारी को पता करने में सहायता ली जा सकती है कि कौन सा जोड़ा इस बीमारी का शिकार है. अगर बच्चे पैदा करने की योजना है तो सीजीटी सबसे सही उपाय और पद्धति है. इसे अपनाने पर पारंपरिक जेनेटिक डिसऑर्डर से बच्चे को हर हाल में बचाया जा सकता है.