रंग-रंगीला और खुशियों का त्योहार बैसाखी आज

नई दिल्ली. गीत-संगीत और भांग्णा करते लोग और एक दुसरे के साथ मिलकर फसल पकने की खुशियां मनाते लोग. जी हां कुछ ऐसा ही माहौल होता है बैसाखी के दिन, बैसाखी को सिख समुदाय नए साल के आगमन के तौर पर मनाता है. पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ बैसाखी उत्तर भारत में भी पूरे उत्तसाह के साथ मनाया जाता है.
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बैसाखी पर्व हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है. वैसे कभी-कभी 12-13 वर्ष में यह त्योहार 14 तारीख को भी आ जाता है. रंग-रंगीला और छबीला पर्व बैसाखी अप्रैल माह के 13 या 14 तारीख को जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब मनाया जाता है. यह खरईफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है. पंजाब, हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काटने की खुशी में इस त्योहार को मनाते हैं. इसी दिन यानी 13 अप्रैल 1699 को सिख समुदाय के दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. सिख समुदाय इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के जरिए पूरे देश को बैसाखी की शुभकामनाएं दी है. उन्होंने ट्विट किया है “भारत और विश्व भर के सभी लोगों को बैसाखी के शुभ अवसर पर मेरा अभिवादन. यह दिन समाज में खुशी और समृद्धि लाता है”.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी बैसाखी की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को बधाई दी  उन्होंने कहा, ‘बैसाखी के उल्लासपूर्ण अवसर पर मैं देशवासियों, खासकर कृषि क्षेत्र में लगे बहन-भाइयों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं. फसली सत्र के साथ पड़ने वाला यह उल्लासपूर्ण पर्व समृद्धि और प्रसन्नता दे. हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रकृति की उदारता हमारे मेहनतकश किसानों पर लगातार अपना आशीर्वाद बनाए रखे. इस विशेष दिन पर हमें एक दूसरे के साथ, खासकर गरीबों और जरूरतमंद लोगों के साथ खुशी बांटनी चाहिए’.
इस मौके पर बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी अपने अंदाज में फैन्स को बैसाखी की बधाईयां दी है. अमिताभ ने ट्विटर पर लिखा “बैसाखी दियां बधाइयां”
कैसे मनाई जाती है बैसाखी?
बैसाखी वाले दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है. शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं. पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते है. मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहाँ पंथ की नींव रखी गई थी.
सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है. दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है. इसके बाद पंच प्यारे ‘पंचबानी’ गाते हैं. दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है. प्रसाद लेने के बाद सब लोग ‘गुरु के लंगर’ में शामिल होते हैं. इस दिन श्रद्धालु कारसेवा करते हैं. दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं.
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