नई दिल्ली: हीमोफीलिया एक आनुवंशिक विकार है जिसमें खून का थक्का बनने की प्रक्रिया में समस्या होती है। इसे “शाही बीमारी” कहा जाता है क्योंकि इतिहास में कई शाही परिवारों में यह पाया गया था, विशेषकर यूरोप में। आइए जानते हैं आखिर क्यों होती है ये बिमारी। कितना गंभीर है हीमोफीलिया और क्या हैं इसके लक्षण?
1. आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutation)
हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है: हीमोफीलिया ए और हीमोफीलिया बी। हीमोफीलिया ए में, फैक्टर VIII की कमी होती है और हीमोफीलिया बी में, फैक्टर IX की कमी होती है। यह बीमारी X क्रोमोसोम पर मौजूद जीनों में उत्परिवर्तन के कारण होती है। चूंकि पुरुषों में केवल एक X क्रोमोसोम होता है, वे अधिक प्रभावित होते हैं। महिलाएं अक्सर वाहक होती हैं लेकिन लक्षणों का अनुभव नहीं करतीं क्योंकि उनके पास दो X क्रोमोसोम होते हैं।
2. विरासत (Inheritance)
यह बीमारी आमतौर पर माता-पिता से संतानों को विरासत में मिलती है। अगर मां इस गंभीर बीमारी की वाहक है, तो बेटों में बीमारी का खतरा होता है और बेटियां वाहक हो सकती हैं। अगर पिता को हीमोफीलिया है, तो उनकी बेटियां वाहक बन सकती हैं लेकिन बेटे सामान्य होंगे क्योंकि वे Y क्रोमोसोम से प्रभावित नहीं होते।
अत्यधिक खून बहना: चोट लगने पर खून का थक्का नहीं जमता, जिससे अत्यधिक खून बह सकता है।
आंतरिक रक्तस्राव: जोड़ों और मांसपेशियों में रक्तस्राव हो सकता है, जिससे सूजन और दर्द हो सकता है।
आसानी से चोट लगना: हल्की चोटें भी गंभीर हो सकती हैं और लंबे समय तक खून बह सकता है।
असामान्य रक्तस्राव: हीमोफीलिया से ग्रसित लोगों में अक्सर असामान्य रक्तस्राव की शिकायत हो सकती है, परंतु ऐसा केवल बड़ी सर्जरी या किसी चोट के बाद ही होता है।
निदान: खून के परीक्षण से फैक्टर VIII और IX की कमी की जांच की जाती है।
उपचार: फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी: प्रभावित फैक्टर VIII या IX को इंजेक्शन के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट किया जाता है।
नवीन उपचार: जीन थेरेपी और नई दवाइयां भी उपलब्ध हैं जो खून के थक्के बनने में मदद करती हैं।
ब्रिटिश शाही परिवार: क्वीन विक्टोरिया एक प्रसिद्ध वाहक थीं, और उनकी संतानों में हीमोफीलिया फैल गया।
रूसी शाही परिवार: ज़ार निकोलस II का बेटा एलेक्सई हीमोफीलिया से पीड़ित था, जिसने इस बीमारी को और भी प्रसिद्ध बना दिया।
हीमोफीलिया एक गंभीर लेकिन प्रबंधनीय विकार है। नियमित चिकित्सा और उचित उपचार से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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