नई दिल्ली: बचपन में हम सभी ने चुड़ैलों की डरावनी कहानियां जरूर सुनी होंगी। कई बार हमें जल्दी सुलाने के लिए घर के बड़े-बुजुर्ग चुड़ैलों का जिक्र करते थे, जो रात में आकर बच्चों को उठा ले जाती थीं। लेकिन क्या ये सच में होती थीं या सिर्फ डराने के लिए बनाई गई बातें थीं?
यहां हम जिन “रात की चुड़ैलों” की बात कर रहे हैं, वो कोई भूत-प्रेत नहीं थीं। असल में, ये बेहद बहादुर महिला सैनिकों का एक समूह था, जिसे इतिहास में ‘नाइट विच्स’ के नाम से जाना जाता है। ये महिलाएं सोवियत यूनियन के 588th बॉम्बर रेजिमेंट की सदस्य थीं, जिनका काम था रात के अंधेरे में दुश्मनों पर बम बरसाना। इन्हें इतने सटीक तरीके से अपने मिशन को अंजाम देना आता था कि जब तक दुश्मन को इनके आने का पता चलता, तब तक तबाही मच चुकी होती थी।
साल 1942 में इन बहादुर महिला सैनिकों का पहला मिशन हुआ, जिसमें उन्होंने जर्मन सैनिकों को निशाना बनाया। उनके साहस और कुशलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन नाइट विच्स ने करीब 2,400 मिशन पूरे किए और 3 हजार टन से भी ज्यादा बम गिराए।
नाइट विच्स की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी प्लेन उड़ाने की कुशलता। वे बहुत कम ऊंचाई पर प्लेन उड़ाने में माहिर थीं, जिससे दुश्मनों के रडार उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। उनके प्लेन हल्के और लकड़ी के बने होते थे, जो आसानी से दुश्मनों की नजर से बचकर निकल जाते थे। इन महिलाओं को इतनी कड़ी ट्रेनिंग दी जाती थी कि अगर कभी वे दुश्मन के हाथों पकड़ भी जाएं, तो अकेले ही 3-4 नाजी सैनिकों से निपट सकती थीं।
इन बहादुर महिला सैनिकों ने दूसरे विश्व युद्ध में अपनी वीरता और साहस का ऐसा परिचय दिया कि आज भी उनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उनके साहस ने साबित किया कि युद्ध के मैदान में महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं।
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