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मुमताज महल को तीन बार क्यों दफनाया गया, जानें ताजमहल की अनसुनी कहानी!

नई दिल्ली: ताजमहल को शाहजहां और मुमताज महल के अमर प्रेम की निशानी माना जाता है। इस शानदार इमारत के पीछे एक ऐसी कहानी छिपी है जो बहुत कम लोग जानते हैं। क्या आप जानते हैं कि मुमताज महल को ताजमहल में अंतिम रूप से दफनाया से पहले दो बार और अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया था? आइए, इस अनसुनी कहानी के बारे में जानते हैं।

मुमताज महल का पहला दफन

मुमताज, जिनका असली नाम अर्जुमंद बानो बेगम था उनकी मृत्यु 17 जून 1631 को बुरहानपुर में हुई। उस समय शाहजहां दक्षिण भारत में सैन्य अभियान पर थे। मुमताज का निधन उनके 14वें बच्चे को जन्म देते समय हुआ। शाहजहां ने अपनी प्यारी बेगम की याद में एक भव्य मकबरा बनाने का संकल्प लिया। लेकिन ताजमहल के निर्माण से पहले, मुमताज को बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे एक अस्थायी कब्र में दफनाया गया।

दूसरी बार आगरा में दफन

शाहजहां चाहते थे कि मुमताज महल का अंतिम विश्राम ताजमहल में हो। कुछ महीनों के बाद, मुमताज के शव को बुरहानपुर से आगरा लाया गया और रउजा-ए-मुनव्वरा नामक एक अस्थायी मकबरे में रखा गया। उस समय ताजमहल का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ था, इसलिए यह एक अस्थायी व्यवस्था थी।

तीसरी और अंतिम दफन ताजमहल में

1633 में, ताजमहल का निर्माण पूरा हुआ। तब जाकर मुमताज महल को तीसरी और अंतिम बार ताजमहल में दफनाया गया। यही वह स्थान है जिसे आज हम ताजमहल के रूप में जानते हैं। यह मकबरा शाहजहां के गहरे प्रेम का प्रतीक है और इसे प्यार की अमर निशानी के रूप में देखा जाता है।

एक प्रेम की अमर निशानी

शाहजहां के दरबारी इतिहासकार इनायत खां की किताब “शाहजहांनामा” में बताया गया है कि मुमताज महल ने मरने से पहले शाहजहां से एक सुंदर महलनुमा मकबरे की इच्छा जताई थी। मुमताज की यह इच्छा पूरी करने के लिए शाहजहां ने यमुना नदी के किनारे ताजमहल का निर्माण कराया। मुमताज को तीन बार अलग-अलग जगहों पर दफनाया की यह कहानी ताजमहल को और भी खास और अनोखा बनाती है।

शाहजहां और मुमताज की अमर प्रेम कहानी

शाहजहां और मुमताज महल की प्रेम कहानी ताजमहल की हर ईंट में बसी हुई है। यह सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक सच्चे और गहरे प्यार की निशानी है। मुमताज को तीन बार दफनाया की यह अनसुनी कहानी ताजमहल के इतिहास को और भी दिलचस्प और भावनात्मक बनाती है। ताजमहल, शाहजहां और मुमताज के अमर प्रेम की गवाही देता है और इस कारण से यह दुनिया भर में एक अद्वितीय स्मारक के रूप में जाना जाता है।

 

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Anjali Singh

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