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इस्लाम ये कैसी परंपरा, जिसमें जितनी चाहे उतनी शादी कर सकती हैं लड़कियां

इस्लाम ये कैसी परंपरा, जिसमें जितनी चाहे उतनी शादी कर सकती हैं लड़कियां

नई दिल्ली: इस्लाम धर्म में शादी को एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है, जहां पति और पत्नी के परिवार आपसी सहमति से विवाह संबंध बनाते हैं। बता दें इस विवाह में पति के परिवार द्वारा पत्नी के परिवार को ‘मेहर’ के रूप में कुछ धनराशि दी जाती है और लड़का-लड़की की सहमति के बाद विवाह पूरा होता है। इसके साथ ही इस्लाम में दो प्रमुख संप्रदाय हैं – शिया और सुन्नी। इसलिए दोनों की विवाह संबंधी परंपराएं और मान्यताएं अगल-अगल होती हैं.  इसमें शिया समुदाय में एक विशेष प्रकार की शादी होती है जिसे ‘मुताह’ विवाह कहा जाता है।

मुताह विवाह क्या होता है

मुताह विवाह को अस्थाई विवाह का रूप माना गया है। बता दें ‘मुताह’ शब्द अरबी से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘आनंद’ या ‘मजा’। इस प्रकार के विवाह में दो लोग, जो लंबे समय तक एक-दूसरे के साथ नहीं रहना चाहते वो अस्थायी रूप से विवाह कर सकते हैं। वहीं शिया संप्रदाय के मुस्लिम, खासतौर पर दुबई और अबू धाबी जैसे क्षेत्रों में, अक्सर इस प्रकार के विवाह का पालन किया जाता हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यापार के सिलसिले में इन लोगों को अक्सर लंबी यात्राएं करनी पड़ती हैं और ऐसे में मुताह विवाह एक समाधान बन जाता है।

मुताह विवाह की एक विशेषता यह है कि यह एक निर्धारित समय सीमा के साथ होता है। इस समय सीमा के खत्म होने पर दोनों अपने-अपने रास्ते अलग कर सकते हैं। वहीं विवाह समाप्त करने के बाद पति को पत्नी को मेहर देना होता है, जो कि एक सामान्य मुस्लिम विवाह में भी दिया जाता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में स्वीकारा गया

शिया समुदाय द्वारा मुताह विवाह को मान्यता दी गई है और इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी स्वीकारा गया है। इसके अलावा इस विवाह में किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होती और महिलाएं अपनी इच्छा अनुसार इसमें जितनी चाहे शादियां कर सकती हैं। इस दौरान अवधि एक महीने की भी हो सकती है और एक साल की भी, इसके बाद विवाह समाप्त हो जाता है.  महिला फिर से किसी और के साथ विवाह कर सकती है। हालांकि यह विवाह सुन्नी समुदाय में मान्य नहीं है और इसे अवैध माना जाता है। इस प्रकार इस्लाम धर्म के भीतर भी विभिन्न संप्रदायों में शादी को लेकर विभिन्न परंपराएं हैं।

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