नई दिल्ली। ये दुनिया बहुत बड़ी है और यहां तरह-तरह के लोग रहते हैं। ऐसे में दुनिया के हर कोने में अपनी अलग परंपरा और संस्कृति देखने को मिलती है। यही वजह कि जब कोई बाहरी व्यक्ति या दूसरी संस्कृति का व्यक्ति किसी और दूसरे स्थान पर जाता है तो उसे वहां की परंपरा समझ नहीं आती और वो ये सोचता ही रहा जाता है कि ऐसा भी कल्चर हो सकता है क्या। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में, जिनकी अपनी अलग खासियत है, जो भारत की संस्कृति से काफी मिलती-जुलती है।
दरअसल, ये एक अलग जनजाति है, जिनकी विशेषता ये है कि वो अपने मवेशियों को ही अपना सब कुछ मानते हैं। इनकी पूरी ज़िंदगी मवेशियों के ही इर्द-गिर्द घूमती है। चूंकि इस जनजाति के आय का प्रमुख स्रोत यही हैं, इसलिए ये उन्हें हर वो सुविधा देते हैं, जो इनके हाथ में है। यहां तक कि ये मशीन गन के साथ अपने गाय-बैलों की सुरक्षा करते हैं।
दरअसल, अफ्रीका के दक्षिण सूडान में रहने वाली जनजातीय समूह मुंडारी के लिए गाय सिर्फ पशु नहीं बल्कि उनकी प्रतिष्ठा का सवाल होती है। ऐसे में कोई भी उनकी गायों के साथ कुछ बुरा नहीं कर सकता। ऐसे में जब गायें सोती हैं, तो इस ट्राइब के लोग मशीन गन लेकर पहरेदारी करते हैं। इतना ही नहीं, वे उनके गोमूत्र से ही अपना सिर थोते हैं और इसमें मौजूद यूरिक एसिड से उनके बाल रंग जाते हैं। इस जनजाति के लोग गाय के गोबर से दांत साफ करते हैं और इसे पाउडर के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा वो गोबर और गोमूत्र का एंटीबायोटिक से लेकर मच्छरों से सुरक्षा के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
मुंडारी जनजाति के इन लोगों के लिए गायें उनके परिवार की तरह हैं और वे इनसे ज़रा भी दूर नहीं रहना चाहते। वो इन्हें इतना खिलाते-पिलाते और उनकी सेवा करते हैं कि यहां गायों की लंबाई 8-8 फीट तक होती है। यहां के भारी-भरकम गाय-बैलों की कीमत औसत $500 पानी करीब 42 हजार रुपये है। यही कारण है कि यहां गायों को मारा नहीं जाता बल्कि दहेज या गिफ्ट के तौर पर दिया जाता है। इतना ही नहीं ये मुंडारी लोग दिन में दो बार अपने मवेशियों की मालिश भी करते हैं और अपने पसंदीदा पशु के साथ सी भी जाते हैं। वो उनका स्टेटस सिंबल होते हैं।
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