भारत में कई तरह की अनोखी परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। ये परंपराएं और रीति-रिवाज सदियों से लोगों के बीच चलती आ रही हैं। इन्हीं अनोखी परंपराओं में से एक है केरल का कोट्टनकुलंगरा श्री देवी मंदिर। इस मंदिर में पुरुषों को देवी की पूजा के लिए 16 श्रृंगार करने पड़ते हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण
नई दिल्ली: भारत में कई तरह की अनोखी परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। ये परंपराएं और रीति-रिवाज सदियों से लोगों के बीच चलती आ रही हैं। इन्हीं अनोखी परंपराओं में से एक है केरल का कोट्टनकुलंगरा श्री देवी मंदिर। इस मंदिर में पुरुषों को देवी की पूजा के लिए 16 श्रृंगार करने पड़ते हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण
यह मंदिर केरल राज्य में स्थित कोट्टनकुलंगरा में स्थित है। कोट्टनकुलंगरा श्री देवी मंदिर केरल का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर देवी भद्रकाली को समर्पित है। पुरुषों को कोट्टनकुलंगरा श्री देवी मंदिर में 16 बार शृंगार करने पड़ते हैं और इस मंदिर में ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि पुरुषों का 16 बार शृंगार करना पुरुष देवी की शक्ति का प्रतीक हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी भद्रकाली अत्यंत शक्तिशाली हैं और पुरुषों को उनकी शक्ति का एहसास हो सके इसलिए उनको 16 श्रृंगार करना होता है। कई लोगों का मानना है कि यह परंपरा लिंग समानता को दर्शाने के लिए है। इस परंपरा का पालन करने से यह पता चलता है कि देवी की पूजा करने के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार है।
कोट्टनकुलंगरा श्री देवी मंदिर की इस अनोखी परंपरा के पीछे कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार- एक बार देवी भद्रकाली ने एक राक्षस का वध कर दिया था। देवी भद्रकाली का इस युद्ध में इतना भयानक और खौफनाक रूप था कि किसी के लिए भी देवी को पहचानना संभव नहीं था। उस समय देवी ने 16 रूप धारण किये। बता दें कि यह परंपरा केरल की संस्कृति का एक खास हिस्सा है। यह पारंपरिक स्थानीय लोगों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की रचना है।
पुरुषों के लिए 16 श्रृंगार में अलग-अलग तरह के कॉस्मेटिक्स लाए जाते हैं। इन 16 श्रृंगार में बिंदी, काजली, सिन्दूर, बनारसी साड़ी, आईलाइनर, चूड़ियां आदि शामिल होते हैं। इस प्रथा में इसके साथ-साथ पुरुषों को साड़ी पहनने और गहने पहनने होते हैं। यह परंपरा आज के समय में भी चली आ रही है और भक्त पूरी श्रद्धा से इस परंपरा का पालन करते हैं। बता दें, जहां पहले इस परंपरा को सिर्फ स्थानीय लोग ही निभाते थे, वहीं अब दूर-दूर से लोग इस मंदिर में आते हैं और 16 श्रृंगार करके देवी की पूजा करते हैं।
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