नई दिल्ली : हजारों करोड़ों सालों से जब धरती पर इंसान नहीं हुआ करते थे और जीवन प्रक्रिया केवल एक जीव से दूसरे जीव के बीच चलती रहती थी तब धरती कई ऐसे जानवरों से भरी थी जो आज विलुप्त हो चुके हैं. जानवर दूसरे जानवर को खाता है लेकिन बिना किसी लालच भूख लगने […]
नई दिल्ली : हजारों करोड़ों सालों से जब धरती पर इंसान नहीं हुआ करते थे और जीवन प्रक्रिया केवल एक जीव से दूसरे जीव के बीच चलती रहती थी तब धरती कई ऐसे जानवरों से भरी थी जो आज विलुप्त हो चुके हैं. जानवर दूसरे जानवर को खाता है लेकिन बिना किसी लालच भूख लगने पर ही वह किसी और जानवर का शिकार करता है.
यही धरती का भी नियम है. लेकिन इंसान ऐसा जीव है, जो बेवजह या लालच में कई जानवरों को मारता है उनके घरों यानी जंगल काटता है. सदियों तक कई जानवरों का शिकार किया गया, प्रदूषण बढ़ा, जलवायु परिवर्तन हुआ., वैश्विक गर्मी बढ़ी इसलिए 100 सालों में 15 जीव खत्म हो गए. आइए बताते हैं कौन सी हैं ये विलुप्त प्रजातियां.
सिलियन वूल्फ तो 20 के दशक में ही खत्म हो गए थे. यह ग्रे वूल्फ की उप-प्रजाति थी, जो साल 1924 तक खत्म हो गई थी. ये सिसली और उसके आसपास 21,500 सालों से रह रहे जीव थे जो 20वीं सदी में विलुप्त हो गए. आशंका है कि इनके विलुप्त होने की वजह शिकार है.
तस्मानियन टाइगर 30 के दशक में विलुप्त हो गए थे. इन्हें आखिरी बार 1936 में देखा गया था जिसके बाद ये कभी नहीं देखे गए. आगे से ये किसी भेड़िये की तरह और शरीर के पिछले हिस्से पर बाघों जैसी पट्टियां होती थीं. आमतौर पर तस्मानियन टाइगर ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाए जाते थे. मुख्य रूप से शिकार की वजह से ये विलुप्त हुए.
जेरसेस ब्लू तितली को आखिरी बार आज से 50 से भी अधिक सालों पहले साल 1941 में देखा गया था. इसके बाद ये खूबसूरत तितली लापता हो गई. इसके विलुप्त होने की असली वजह विकसित किए जा रहे शहर थे.
जापानीज सी लायन (Japanese Sea Lion) 50 के दशक में विलुप्त हो गए थे. हालांकि इनका एक आखिरी जीव 1970 में अंतिम बार दिखा. ये समुद्री लायन जापानी आर्किपेलागो और कोरियन प्रायद्वीप के आसपास रहते थे. ये रेत पर ब्रीडिंग किया करते। 1900 तक इंसानों ने बड़े धड़ल्ले से इनका शिकार किया जिस वजह से इनकी मात्रा कम होती चली गई.
क्रेसेंट नेल टेल वालाबी 50 के दशक में विलुप्त हो चुके थे. ये वोरोंग भी कहलाते थे. ये छोटे मार्सूपियल जीव थे जो घास और झाड़ियां खाते थे. आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम और मध्य ऑस्ट्रेलिया पाए जाने वाले इस जीव को आखिरी बार साल 1956 में देखा गया था. इनके विलुप्त होने की भी वजह शहरीकरण ही थी.
बूबल हार्टेबीस्ट (Bubal Hartebeest) को भी आखिरी बार 50 के दशक में देखा गया था. ये जीव सहारा रेगिस्तान के उत्तरी इलाके में पाया जाता था. यह एक एंटीलोप था जो रेत के रंग का ही होता था. ये अक्सर मोरक्को और मिस्र में भी दिखते थे. 19वीं सदी में इनकी संख्या तेजी से घटने लगी क्योंकि कोलोनियल मिलिट्री द्वारा इनकी पूरी आबादी को मार डाला गया था.
काकावाही (Kakawahie) पक्षी को आखिरी बार 1963 में देखा गया था. ये शहद खाते थे. आमतौर पर हवाई द्वीप पर ही मिलते थे. यह पक्षी 5.5 इंच लंबा होता था. सुंदर नारंगी रंग में रंगा हुआ. या यूं कहें कि स्कारलेट रेड कलर में. जंगलों का नाश होने से ही इन पक्षियों का घर बिखर गया. मच्छरों की वजह से पक्षियों को बीमारियों ने जकड़ लिया. शहरों के बनते ही कुत्ते और बिल्लियां इनका शिकार करने लगे.
कैस्पियन टाइगर (Caspian Tiger) को साल 1970 से ही विलुप्त मान लिया गया. लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा 2003 में हुई. ये बाघ आमतौर पर पूर्वी तुर्की, उत्तरी ईरान, मेसोपोटामिया, कैस्पियन सागर, मध्य एशिया से लेकर अफगानिस्तान तक पाए जाते थे. इन्हें चीन, रूस और यूक्रेन के भी कई भागों में देखा जाता था. ये साइबेरियन और बंगाल टाइगर के बीच की आकृति वाले थे. इन्हें बालखाश टाइगर, हिरकैनियन, तुरैनियन, मजनदारन टाइगर के नाम से भी बुलाया जाता था.
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