नई दिल्ली : कई बार किसी के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए हमें ऐसे काम करने पड़ते हैं जो कानूनी तौर पर नहीं होते। इसे ऐसे समझें, अगर कोई आपको फोन पर धमका रहा है या खुलेआम धमका रहा है और आप उस धमकी को रिकॉर्ड करना चाहते हैं। अगर आप उसे इस तरह रिकॉर्ड करना चाहते हैं कि उसे पता न चले, तो आप यह काम छिपकर करेंगे।
हालांकि, ऐसा करना कानूनी तौर पर अपराध है। यानी आप किसी के फोन या उसकी बिना इजाजत के रिकॉर्डिंग नहीं कर सकते। अब ऐसे में अगर किसी केस में ऐसी रिकॉर्डिंग पेश की जाती है, तो क्या कोर्ट उसे वैध सबूत मानेगा? ऐसा क्यों है इसे आज हम अपने इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में साक्ष्य के प्रकार और उनकी स्वीकृति के नियम लिखे गए हैं। इस अधिनियम के तहत सभी तरह के साक्ष्य, जो कानूनी तौर पर स्वीकार्य हैं, कोर्ट में पेश किए जा सकते हैं। हालांकि, जब अवैध रिकॉर्डिंग की बात आती है, तो कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कोर्ट में पेश करने के लिए जरूरी है कि उसे सही तरीके से इकट्ठा किया गया हो। यानी अगर कोई रिकॉर्डिंग की गई है तो उसकी प्रामाणिकता कोर्ट में साबित करनी होगी। सरल भाषा में कहें तो यह दिखाना होगा कि रिकॉर्डिंग में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और उसे उचित प्रक्रिया के तहत रिकॉर्ड किया गया है।
इसी तरह धारा 71 के तहत कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्य की स्वीकार्यता तय होती है। अगर रिकॉर्डिंग अवैध तरीके से रिकॉर्ड की गई है तो उसे कोर्ट में मान्यता नहीं मिलेगी। हालांकि, कुछ मामलों में कोर्ट ऐसी रिकॉर्डिंग को भी साक्ष्य के तौर पर मान्यता देता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने साल 2023 में 30 अगस्त को अपने एक फैसले में फैसला सुनाया था कि अब अवैध फोन रिकॉर्डिंग को भी कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर पेश किया जा सकेगा। हालांकि, इस मामले में विजुअल रिकॉर्डिंग का नहीं बल्कि अवैध फोन रिकॉर्डिंग का मामला था।
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