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Rajasthan: आत्मनिर्भरता की ओर महिलाओं का कदम, गोबर से बनाया केमिकल मुक्त गुलाल

जयपुर: बिना किसी रंग के होली अधूरी है. लेकिन आज के समय में बाजार में मिलने वाला रंग या तो सिंथेटिक होता है या फिर केमिकल से युक्त. ऐसे में गुलाल लगाने से कब होली की खुशियां गम में बदल जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता है. राजस्थान के जयपुर स्थित एक गांव की महिलाओं ने इस बात समाधान निकाल लिया है. ये गांव केमिकल रंगों से लोगों को बचाने के लिए पूरी तरह से जुटा हुआ है. यहां की महिलाओं ने गोबर से गुलाल यानी गोयम गुलाल बनाने की शुरुआत की है. बता दें, इस काम में करीब 64 परिवारों की महिलाएं जुटी हुई हैं।

दवा और लोन का खर्चा उठाया

ख़ास बात ये है कि ये महिलाएं पहले बकरियां और गाय चराने का काम करती थीं. साथ ही महिलाएं खेती बाड़ी का काम भी संभालती थीं. लेकिन गोयम यानी गोबर से बने गुलाल की शुरुआत कर इन महिलाओं ने ना केवल समाज के लिए कुछ अच्छा किया बल्कि खुद को भी आत्मनिर्भर बनाया है. आज यही महिलाएं अपने परिवार के इलाज का खर्चा और लोन का भार उठा रही हैं. गउ सार एनजीओ के संचालक संजय छाबड़ा इस पहल को बढ़ाने में जुटे हैं. उन्होंने इस गुलाल को पूरी तरह ऑर्गेनिक होने के साथ ही हेल्थ के लिए 100 प्रतिशत सुरक्षित भी बताया है.

ऐसे बनाया जाता है गुलाल

उनके अनुसार इसमें खुशबू के लिए प्राकृतिक तरीका अपनाते हुए फूलों की सुगंध मिलाई जाती है। हालांकि सबसे पहले गोबर की दुर्गंध को हटाने के लिए इसे धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद इसे सुखाकर बारीक तरीके से पीसा जाता है. पीसे जाने के बाद इसमें फूलों की मदद से बनाए गए सुगंधित रंग मिलाए जाते हैं जो पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं. इस गांव में ना केवल गोबर से गुलाल बल्कि कई और तरह के उत्पाद भी बनाए जाते हैं. यहां की महिलाएं गोबर की मदद से मूर्तियां, टाइल्स, घड़ी, नेम प्लेट, की-रिंग और राखी जैसे प्रोडक्ट भी बनाती हैं.

 

इस तरह आया आईडिया

दरअसल ये गांव गायों की सेवा के लिए समर्पित है. जहां गोबर के उत्पाद बनाने का ख़याल उस समय आया जब संजय चार साल पहले गायों की सेवा के लिए हिगोनिया गोशाला गए. इस दौरान एक गाय के पेट से ऑपरेशन कर प्लास्टिक की पन्नी को निकाला गया. जिसके बाद संजय ने इस तरह के कार्यों को बढ़ावा दिया और गोबर के उत्पाद बनाने की शुरुआत हुई.

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Riya Kumari

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