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आइसक्रीम सिर्फ अमीर ही खा सकते हैं , जानें इसके पीछे का कारण

नई दिल्ली : आइसक्रीम…आइसक्रीम यह नाम सुनते ही बड़ों और बच्चों दोनों के के मुंह में पानी आ जाता है। गर्मी के मौसम में ठंडक और ताज़गी का एहसास दिलाने वाली आइसक्रीम कभी सिर्फ़ अमीरों के लिए थी। उस समय यह गरीब लोगों के लिए किसी सपने से कम नहीं थी। आज हम जानेंगे कि इसकी ऐसी क्या वजह थी।

आइसक्रीम का इतिहास

आइसक्रीम

आइसक्रीम का इतिहास बहुत पुराना है। इस मिठाई की शुरुआत मुख्य रूप से चीन से हुई, जहाँ दूध और चावल को बर्फ में मिलाकर एक तरह की ठंडी मिठाई बनाई जाती थी। धीरे-धीरे यह भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप में फैल गई, लेकिन इसकी पहुँच सिर्फ़ अमीर वर्ग तक ही सीमित थी। गरीब लोगों के लिए इसे खरीदना संभव नहीं था।

आर्थिक असमानता

19वीं और 20वीं सदी में जब आइसक्रीम का उत्पादन शुरू हुआ, तब समाज में आर्थिक असमानता अपने चरम पर थी। अमीर लोग महंगी और स्वादिष्ट आइसक्रीम का मज़ा ले सकते थे, जबकि गरीब लोगों के पास ऐसी विलासिता की चीज़ें खरीदने की क्षमता नहीं थी। यह स्थिति सिर्फ़ आइसक्रीम पर ही नहीं, बल्कि कई अन्य खाद्य पदार्थों पर भी लागू थी।

आपको बता दें कि उस समय आइसक्रीम बनाने के लिए खास उपकरणों और सामग्रियों की जरूरत होती है, जो पहले आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं थे। साथ ही इसे ठंडा रखने के लिए बर्फ और दूसरी चीजें मिलना भी मुश्किल था। ऐसे में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन कर गरीबों को बेचना संभव नहीं था।

किस वजह से सस्ता हुआ आइसक्रीम

20वीं सदी के मध्य में जब औद्योगिक क्रांति और तकनीकी विकास हुआ, तो आइसक्रीम के उत्पादन में भी क्रांति आई। नई मशीनों और तकनीकों की वजह से आइसक्रीम का उत्पादन सस्ता और सरल हो गया। इससे इसकी कीमतें भी कम हुईं और यह ज्यादा लोगों को उपलब्ध होने लगी।

ऐसे में जैसे-जैसे आइसक्रीम का उत्पादन बढ़ा, इसे बेचने का तरीका भी बदलने लगा। आइसक्रीम को अलग-अलग फ्लेवर और पैकिंग में पेश किया जाने लगा, जिससे यह हर वर्ग के लोगों के लिए खास बन गई।

समाज में बदलाव

आइसक्रीम की सुलभता बढ़ाने में समाज में बदलाव भी अहम रहे। जैसे-जैसे समाज में जागरूकता बढ़ी, गरीबों के लिए भोजन की उपलब्धता और गुणवत्ता को लेकर भी चिंताएँ पैदा हुईं। कई गैर सरकारी संगठनों और सरकारी योजनाओं ने गरीबों के लिए सस्ती आइसक्रीम तक पहुँच सुनिश्चित की।

 

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Manisha Shukla

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