महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी नहीं दे सकती अदालत : सुप्रीम कोर्ट, Mandatory menstrual leave may be counter-productive
नई दिल्ली. मासिक धर्म के दौरान कामकाजी महिलाओं को अवकाश दिए जाने का मुद्दा काफी दिनों से चर्चा में है। अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डीवाई चंद्रचूड और उनकी खंडपीठ ने साफ कह दिया है कि इस मुद्दे पर केंद्र तथा राज्य सरकारें मिल कर फैसला लें।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक मॉडल नीति तैयार करे। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ती जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है।
पीठ ने कहा कि इसके अलावा महिलाओं को ऐसी छुट्टी देने के संबंध में अदालत का निर्णय हानिकारक साबित हो सकता है। नियोक्ता उन्हें काम पर रखने से परहेज कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि इस तरह की छुट्टियों को अनिवार्य किए जाने से महिलाएं वर्कफोर्स से दूर हो सकती हैं।
फरवरी 2023 में स्पेन ने एक विधेयक पारित किया, जिसके अनुसार मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं को महीने में तीन दिन तक ‘मासिक धर्म अवकाश’ लेने की अनुमति दी गई। हलांकि एशिया और अफ्रीका में कई देश पहले ही ऐसा कर चुके थे। इस तरह संघीय रूप से संरक्षित मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत हुई जिससे चर्चा वैश्विक स्तर पर आ गई। सात देशों स्पेन, इंडोनिशया, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, वियतनाम और जाम्बिया में मासिक धर्म अवकाश मिलता है।
प्रत्येक देश की नीति अलग-अलग है। स्पेन की तरह कुछ नीतियों में, मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द की पुष्टि के लिए डॉक्टर के नोट की आवश्यकता होती है। वियतनाम जैसे देश महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म की छुट्टी न लेने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देते हैं। कई देशों में मासिक धर्म की छुट्टी का विकल्प भी अनिवार्य है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि छुट्टी के लिए भुगतान किया जाए। जैसे -जैसे अधिकाधिक देश और कंपनियां मासिक धर्म अवकाश नीतियां पारित कर रही है शिक्षाविद , कार्यकर्ता और संगठन इस पर बहस कर रहे हैं।
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