नई दिल्ली। वर्तमान में दुनिया बदलते मौसम के कारण बढ़ते तापमान के विनाशकारी प्रभाव का अनुभव कर रही है। बता दें कि 2024 लगातार ये दूसरा महीना है जब वैश्विक तापमान सामान्य स्तर से ऊपर देखा जा रहा है। इससे पहले वैश्विक औसत तापमान 1.5 डिग्री से ऊपर गया था। हालांकि, इसके एक दशक से […]
नई दिल्ली। वर्तमान में दुनिया बदलते मौसम के कारण बढ़ते तापमान के विनाशकारी प्रभाव का अनुभव कर रही है। बता दें कि 2024 लगातार ये दूसरा महीना है जब वैश्विक तापमान सामान्य स्तर से ऊपर देखा जा रहा है। इससे पहले वैश्विक औसत तापमान 1.5 डिग्री से ऊपर गया था। हालांकि, इसके एक दशक से भी पहले दुनिया ने एक पूरे समुद्र को गायब होते हुए देखा(khabar Jara Hatkar) था। इस वॉटर बॉडी को अरल सागर (Aral Sea) कहा जाता था, ये कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच एक भूमि से घिरी झील थी, जो 2010 तक काफी हद तक सूख गई।
बता दें कि 68,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ अरल सागर दुनिया में इनलैंड वॉटर का चौथा सबसे बड़ा भंडार माना जाता था। वहीं 1960 के दशक में जब सोवियत सिंचाई परियोजनाओं के लिए इसे पानी देने वाली नदियों का रुख मोड़ दिया गया तब इसका सिकुड़ना शुरू हुआ। नासा की अर्थ ऑब्जर्वेटरी ने अरल सागर के गायब होने की वजह का विस्तृत विश्लेषण पोस्ट किया।
1960 के दशक में, सोवियत संघ ने सिंचाई के लिए कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के शुष्क मैदानों पर एक प्रमुख जल मोड़ परियोजना की शुरूआत की। इसमें क्षेत्र की दो प्रमुख नदियों, उत्तर में सीर दरिया और दक्षिण में अमु दरिया का इस्तेमाल रेगिस्तान को कपास और अन्य फसलों के लिए खेतों में बदलने के लिए किया गया। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, अरल सागर का निर्माण निओजीन काल के अंत में (23 से 2.6 मिलियन वर्ष पहले) हुआ था, जब दोनों नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया और अंतर्देशीय झील में उच्च जल स्तर बनाए रखा।
जानकारी के अनुसार, अपने चरम पर, अरल सागर उत्तर से दक्षिण तक करीब 270 मील (435 किमी) और पूर्व से पश्चिम तक 180 मील (290 किमी) से अधिक तक फैला(khabar Jara Hatkar) था। लेकिन खेतों के लिए नदियों के पानी का रुख मोड़ने के बाद, इसका पानी कम हो गया और पूरा समुद्र वाष्पित हो गया। वहीं झील के कुछ हिस्से को बचाने की आखिरी कोशिश में कजाकिस्तान ने अरल सागर के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों के बीच एक बांध का निर्माण किया। लेकिन अब जलस्रोत को उसके पूर्ण गौरव पर लाना लगभग असंभव ही है।
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