नई दिल्ली: आजादी के वक्त भारत में 550 से ज्यादा देसी रियासतें हुआ करती थीं। सबके अपने महाराजा, राजा, नवाब और निजाम थे। इस दौरान महाराजा हाथी, पालकी, घोड़े और बग्घी से चला करते थे। वहीं 18वीं सदी का अंतिम दशक में आते समय भारत में मोटर गाड़ियों ने दस्तक दी और साल 1892 में […]
नई दिल्ली: आजादी के वक्त भारत में 550 से ज्यादा देसी रियासतें हुआ करती थीं। सबके अपने महाराजा, राजा, नवाब और निजाम थे। इस दौरान महाराजा हाथी, पालकी, घोड़े और बग्घी से चला करते थे। वहीं 18वीं सदी का अंतिम दशक में आते समय भारत में मोटर गाड़ियों ने दस्तक दी और साल 1892 में पटियाला के महाराजा ने भारत में पहली मोटर मंगवाई, जो कि फ्रांसीसी(khabar Jara Hat kar) मोटर डि डियान बूतों थी।
बता दें कि इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में राजा-महाराजाओं की गाड़ियों पर लिखा है कि पटियाला के महाराजा की कार का नंबर ‘0’ था और यह भारत की पहली मोटर थी। जब भी महाराजा इससे कहीं जाते तो देखने वालों की लाइन लग जाती थी। भारत के राजा-महाराजा सबसे अधिक रोल्स-रॉयस को पसंद करते थे और कई तरह की शक्ल और साइज में विदेश से गाड़ियां मंगवाते थे। इस दौरान किसी राजा की कार बंद छत वाली होती, तो किसी राजा की खुली छत वाली और कुछ ने स्टेशन वैगन और ट्रकें भी मंगाई।
वहीं सबसे अनोखी रोल्स-रॉयस मोटर महाराजा भरतपुर की थी। यह गाड़ी खुली छत वाली थी। इसके मोटर की बॉडी चांदी की बनी हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि उस कार की चांदी के ढांचे से रहस्यमयी लहरें निकलती थीं और महाराजा, अपनी बिरादरी के दूसरे राजा-महाराजाओं को शादी-विवाह के मौके पर अपनी खास मोटर उधार दिया करते थे और महाराजा भरतपुर ने शिकार(khabar Jara Hat kar) खेलने के लिए भी विशेष तौर से एक रोल्स रॉयस तैयार करवाई थी।
इस दौरान डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि जब नौजवान ए.डी.सी. लॉर्ड लुई माउंटबेटन भारत आए तो एक बार महाराजा भरतपुर उसी मोटर से उन्हें चीतल का शिकार खिलाने लेकर गए थे। इस दौरान भारत के भावी वायसराय ने उस रात अपनी डायरी में लिखा कि वह मोटर खुले जंगली इलाके में गड्ढ़ों और बड़े-बड़े पत्थरों पर कूदती-फांदती इस तरह चली आ रही थी कि ऐसा लग रहा था समुद्र की तूफानी लहरों पर कोई(khabar Jara Hat kar) नाव जा रही हो।
भारत के महाराजाओं के पास जितनी मोटरें थीं उनमें सबसे अद्भुत महाराजा अलवर की लंकास्टर मोटर थी। उस मोटर के अंदर और बाहर पूरी बॉडी पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था और ड्राइवर के हाथ में नक्काशीदार हाथी दांत का स्टीयरिंग होता। वह जरी की गद्दी पर बैठता था और ड्राइवर के पीछे बाकी मोटर की शक्ल बिल्कुल उस घोड़ा गाड़ी जैसी थी। जिसपर बैठकर इंग्लैंड का राजा राज्याभिषेक के लिए जाता था और उसके इंजन में न जाने क्या गुण था कि इस ताम-झाम के बावजूद मोटर घंटे में 70 मील की गति से सड़कों पर(khabar Jara Hat kar) फर्राटा भरा करती थी।
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