नहीं रहा मंदिर की रक्षा करने वाला शाकाहारी मगरमच्छ, 70 साल से सिर्फ प्रसाद खाता था बाबिया

केरल. दक्षिण भारत से एक दुखद खबर सामने आ रही है, दरअसल, केरल के शाकाहारी मगरमच्छ बाबिया का कासरगोड के श्री आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में सोमवार को निधन हो गया, ये मगरमच्छ 70 साल का था. मंदिर के पुजारी इसे दिव्य मगरमच्छ कहते हैं. उन्होंने बताया कि ये मगरमच्छ अपना ज्यादातर समय गुफा के अंदर […]

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नहीं रहा मंदिर की रक्षा करने वाला शाकाहारी मगरमच्छ, 70 साल से सिर्फ प्रसाद खाता था बाबिया

Aanchal Pandey

  • October 10, 2022 11:10 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

केरल. दक्षिण भारत से एक दुखद खबर सामने आ रही है, दरअसल, केरल के शाकाहारी मगरमच्छ बाबिया का कासरगोड के श्री आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में सोमवार को निधन हो गया, ये मगरमच्छ 70 साल का था. मंदिर के पुजारी इसे दिव्य मगरमच्छ कहते हैं. उन्होंने बताया कि ये मगरमच्छ अपना ज्यादातर समय गुफा के अंदर बिताता और बस दोपहर में ही बाहर निकलता था.
इस मगरमच्छ का नाम बाबिया था, कहा जाता है कि बाबिया उस गुफा की रक्षा करता था, जिसमें भगवान गायब हो गए थे. मंदिर प्रबंधन के मुताबिक, बाबिया दिन में दो बार परोसे जाने वाले मंदिर के प्रसाद को खाकर ही अपना जीवन बिताता था, इसलिए उसे शाकाहारी मगरमच्छ भी कहा जाता था.

ऐसा था बाबिया

दरअसल, मान्यता है कि सदियों पहले एक महात्मा इसी श्री आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में तपस्या करने आए थे, वो यहाँ रोज़ तपस्या करते थे. इस दौरान भगवान कृष्ण बालक का रूप धरकर आए और अपनी शरारतों से महात्मा को तंग करने लगे, इससे गुस्साकर तपस्वी ने उन्हें मंदिर परिसर में बने तालाब में धकेल दिया, लेकिन थोड़ी ही देर में महात्मा को अपनी गलती का एहसास हो गया, उन्होंने तालाब में उस बच्चे को खोजा, लेकिन पानी में कोई नहीं मिला और एक गुफानुमा दरार दिखाई दी. माना गया कि भगवान उसी गुफा से गायब हो गए थे, कुछ देर बाद इसी गुफा से निकलकर एक मगरमच्छ बाहर आया.

मगरमच्छ बाबिया तालाब में रहने के बावजूद मछलियां और दूसरे जलीय जीवों को नहीं खता था, ये एक शाकाहारी मगरमच्छ था. दिन में दो बार वह भगवान के दर्शन करने निकलता था और भक्तों को बांटे जाने वाले चावल और गुड़ के ‘प्रसादम’ खाकर ही जीता था. बाबिया जब तक इस आश्रम में था, तब तक इसने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और वह मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की ओर से दिए गए फल इत्यादि शांति से खा लेता था. फिर पुजारी के इशारा करते ही तालाब में बनी गुफानुमा दरार में जाकर बैठ जाता था, वह अपना ज्यादातर समय इसी गुफा में बिताता था.

 

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