नई दिल्ली: द्वितीय विश्वयुद्ध इतिहास के सबसे काले पन्नों में से एक है. इस युद्ध में हथियारों और युद्धकौशल के साथ-साथ कई ऐसी चीजों का भी इस्तेमाल हुआ, जिनके बारे में शायद ही कभी सुना होगा. उनमें से एक है कंडोम. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों ने कंडोम को एक अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया. […]
नई दिल्ली: द्वितीय विश्वयुद्ध इतिहास के सबसे काले पन्नों में से एक है. इस युद्ध में हथियारों और युद्धकौशल के साथ-साथ कई ऐसी चीजों का भी इस्तेमाल हुआ, जिनके बारे में शायद ही कभी सुना होगा. उनमें से एक है कंडोम. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों ने कंडोम को एक अनोखे तरीके से इस्तेमाल किया. वो इसे यौन सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि अपनी राइफल्स की रक्षा के लिए इस्तेमाल करते थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों को अक्सर जंगलों और दलदली इलाकों में लड़ना पड़ता था। इन इलाकों में खूब बारिश और कीचड़ हुआ. ऐसे में जवानों की राइफलों के जंग लगने और खराब होने का खतरा था. राइफलों को जंग लगने से बचाने के लिए सैनिक कंडोम का इस्तेमाल करते थे. कंडोम रबर से बने होते हैं और इनमें पानी बनाए रखने की क्षमता होती है। सैनिक अपनी राइफल की बैरल पर कंडोम लगाते थे, जो राइफल को पानी और कीचड़ से बचाता था. इसके अलावा कंडोम राइफल को धूल और अन्य कणों से भी बचाता था.इससे राइफल की कार्यक्षमता में कोई बाधा नहीं आई। इसके अलावा कंडोम हल्के होते हैं और इसके अलावा ये आसानी से उपलब्ध भी होते थे. साथ ही सैनिक इन्हें आसानी से अपनी किट में भी रख सकते थे।
1.कंडोम के इस्तेमाल से राइफलें लंबे समय तक चलती थीं और उन्हें बार-बार बदलने की जरूरत नहीं पड़ती थी.
2. साथ ही अच्छी तरह से रखी हुई राइफल युद्ध में सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी होती थी.
3. साथ ही कंडोम के इस्तेमाल से सेना को राइफलों की मरम्मत पर होने वाले खर्च को कम करने में मदद मिली.
4. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राइफलों को जंग से बचाने के लिए कई नए उपकरण विकसित किए गए.
5. लेकिन आज भी कई लोग कंडोम को राइफल को जंग से बचाने का एक अनोखा और सरल तरीका मानते हैं।
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