नई दिल्ली: भारत आज दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इस बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार दशकों से कई योजनाएं चला रही है। कंडोम भी इन्हीं योजनाओं में से एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कंडोम ब्रांड को ‘निरोध’ नाम कैसे मिला? इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जो एक बड़े राजनीतिक नेता से भी जुड़ी है। आइए, जानते हैं इस अनसुनी कहानी के बारे में।
साल 1963 में सरकार ने पहली बार बड़े पैमाने पर कंडोम बांटने की योजना बनाई थी। उस समय, सरकार अपने कंडोम ब्रांड का नाम ‘कामराज’ रखने वाली थी। आपको बता दें कि कामदेव, जिन्हें यौन आकर्षण के देवता माना जाता है, को ही ‘कामराज’ भी कहा जाता है। ‘काम’ का अर्थ है ‘संभोग’ और ‘काम वासना’ का मतलब है ‘संभोग की इच्छा’। इसलिए उस समय के हिसाब से ये नाम कंडोम के लिए उपयुक्त माना जा रहा था।
हालांकि, सरकार को अपना ये फैसला बदलना पड़ा। उस समय कांग्रेस के बड़े नेता के. कामराज थे, जो पार्टी अध्यक्ष भी थे। उन्होंने नेहरू के बाद पार्टी में बड़ी भूमिका निभाई थी और प्रधानमंत्री चुनने में भी अहम भूमिका अदा की थी। इस वजह से कंडोम का नाम ‘कामराज’ रखना सही नहीं माना गया। इसके बाद एक आईआईएम छात्र की सलाह पर कंडोम का नाम ‘निरोध’ रखा गया, जिसका मतलब होता है ‘सुरक्षा’।
के. कामराज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके थे और उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उनका जन्मदिन आज भी तमिलनाडु में ‘एजुकेशन डेवलपमेंट डे’ के रूप में मनाया जाता है। गरीब परिवार से आने वाले कामराज खुद स्कूल ड्रॉपआउट थे, लेकिन उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया।
तो इस तरह एक बड़े राजनीतिक नेता के सम्मान को ध्यान में रखते हुए कंडोम का नाम ‘कामराज’ से बदलकर ‘निरोध’ रखा गया। यह घटना न सिर्फ हमारे समाज की सोच को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक साधारण सी चीज भी राजनीति और समाज के दृष्टिकोण का हिस्सा बन सकती है।
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