जब बच्चे स्कूल के पहले दिन क्लास में जाते हैं, तो उनसे कहा जाता है कि वे सबके सामने अपना परिचय दें. अब जरा सोचिए, अगर कोई बच्चा खड़ा
नई दिल्ली: जब बच्चे स्कूल के पहले दिन क्लास में जाते हैं, तो उनसे कहा जाता है कि वे सबके सामने अपना परिचय दें. अब जरा सोचिए, अगर कोई बच्चा खड़ा होकर कहे, मैं भेड़िया हूं, तो क्लास में क्या होगा? जाहिर सी बात है, बच्चे हंसने लगेंगे. लेकिन ये हंसने की बात नहीं है. ऐसा स्पीशीज डिस्फोरिया नाम की मानसिक स्थिति के कारण हो सकता है. हाल ही में ब्रिटेन में ऐसा ही एक मामला सामने आया, जिसने सबको हैरान कर दिया.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन के एक स्कूल में एक बच्चे ने खुद को भेड़िया बताया. उसने कहा कि वह भेड़िया है और इसी पहचान के साथ पढ़ाई करना चाहता है. हैरानी की बात ये है कि स्कूल ने इसे स्वीकार कर लिया! स्कूल पहले से इस मानसिक स्थिति से वाकिफ था, जिसे स्पीशीज डिस्फोरिया कहते हैं. इस कारण बच्चे की बात पर कोई आपत्ति नहीं की गई. ये कोई अकेला मामला नहीं है. ब्रिटेन के कई स्कूलों में बच्चे खुद को अलग-अलग जानवरों की तरह पहचानते हैं. कोई खुद को सांप, कोई ड्रैगन, तो कोई लोमड़ी या डायनासोर मानता है.
स्पीशीज डिस्फोरिया एक मानसिक स्थिति है, जिसमें इंसान खुद को किसी और प्रजाति का समझने लगता है. जैसे कुछ लोग खुद को भेड़िया, बिल्ली, या पक्षी मानने लगते हैं. यह स्थिति कुछ हद तक लिंग डिस्फोरिया जैसी है, जिसमें व्यक्ति को अपने जन्म से मिले लिंग से अलग महसूस होता है. लेकिन स्पीशीज डिस्फोरिया में इंसान अपनी पहचान किसी जानवर या दूसरे जीव के रूप में देखने लगता है.
इस स्थिति में पीड़ित व्यक्ति अपने अंदर मानसिक और भावनात्मक असंतुलन महसूस करता है. उसे ऐसा लगता है कि उसकी असली पहचान और उसका शरीर आपस में मेल नहीं खाते. जैसे अगर कोई खुद को भेड़िया मानता है, तो उसकी सोच, सपने, और इच्छाएं भी उसी अनुसार बदलने लगती हैं. यह मानसिक स्थिति लोगों के जीवन पर गहरा असर डाल सकती है, इसलिए इसे समझना और इसके प्रति संवेदनशील होना जरूरी है.
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