प्रयागराज। प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन डेढ़ करोड़ और दूसरे दिन अमृत स्नान पर 3.5 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई। महाकुंभ में नागा साधुओं की चर्चा खून हो रही है लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में नागाओं का इतिहास कितना पुराना है। नागाओं की वजह से ब्रिटेन में आखिर क्यों हाहाकार मच गया था? इन लोगों का जीवन कितना कठिन है? आइये जानते हैं पूरी बात…
संस्कृत के ‘नग’ से बना नागा शब्द का मतलब होता है पहाड़। इसका अर्थ हुआ पहाड़ों और गुफाओं में रहने वाला नागा है। इस सम्प्रदाय की शुरुआत 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। इन्हें दशनामी भी कहते हैं। 1 फरवरी 1888 को प्रयागराज में कुंभ चल रहा था। ब्रिटेन के अखबार ‘मख्जान-ए-मसीही’ ने कुंभ को लेकर एक खबर छपी थी, जिसमें लिखा हुआ था कि प्रयागराज में 400 नग्न साधुओं ने जुलूस निकाला और लोग इनका दर्शन कर रहे थे। कुछ लोग इन वस्त्रहीन साधुओं की पूजा भी कर रहे थे। एक अंग्रेज अफसर इन नंगे लोगों के लिए रास्ता बनवा रहा था। ब्रिटेन में न्यूडिटी पर सजा का प्रावधान है और इंडिया में वस्त्रहीन साधुओं के जुलूस में जॉइंट मजिस्ट्रेट रैंक का अंग्रेज अफसर तैनात था, यह बड़ी बात बन गई।
ईसाइयों की सबसे बड़ी संस्था क्रिश्चियन ब्रदरहुड के अध्यक्ष आर्थर फोए ने ब्रिटेन के एक सांसद को पत्र लिखकर कहा कि इस काम के लिए ब्रितानी सरकार ने अंग्रेज अफसर को क्यों तैनात किया था? ऐसा करके उन्होंने ईसाईयों का सिर शर्म से झुका दिया है। ऐसा लग रहा है कि भारतीयों ने अंग्रेजों को अपने पैरों में झुका दिया है। बाद में 16 अगस्त 1888 को ब्रिटिश सरकार ने जवाब दिया कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इलाहाबाद और बाकी जगहों पर ये साधु शोभायात्रा निकालते हैं। हिन्दू समाज में इनका ओहदा काफी बड़ा है।
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