नई दिल्ली. हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक़ ज्यादर मुस्लिम महिलाएं तीन बार बोलकर तलाक देने की इस्लामिक परंपरा से खासी नाराज़ हैं. सर्वे में देश की 92 फीसदी मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि तीन बार तलाक बोलने से रिश्ता खत्म होने का नियम एक तरफा है और इस पर रोक लगनी चाहिए. महिलाओं ने माना कि तलाक से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और इन मामलों में मध्यस्थता का प्रावधान होना चहिए.
देश के 10 राज्यों में मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार के लिए काम करने वाले एनजीओ, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की ओर से किए गए सर्वे में 4,710 महिलाओं से बातचीत की गई. इसमें सोशल मीडिया और मोबाइल संदेश के जरिए भी तलाक लिए जाने पर चिंता जताई गयी है. सर्वे में यह तथ्य उभर कर सामने आया है की अधिकतर मुस्लिम महिलाएं आर्थिक और सामाजिक तौर पर काफी पिछड़ी हैं.
सर्वे के अनुसार 55.3 फीसदी मुस्लिम महिलाओं की 18 साल से पहले ही शादी हो गई और घरेलू हिंसा का भी सामना करना पड़ा. सर्वे में शामिल 91.7 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वह अपने पतियों के दूसरी शादी करने के खिलाफ हैं. इस अध्ययन में शामिल 73.1 फीसदी महिलाओं ऐसी थीं, जिनके परिवार की सालाना आय 50 हजार रुपये से कम है. आश्चर्य यह है कि सर्वे में शामिल 95.5 फीसदी मुस्लिम महिलाओं ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नाम ही नहीं सुना.
सर्वे में संपत्ति के मामले में भी मुस्लिम महिलाओं का पिछड़ापन उजागर हुआ, आंकड़ों के मुताबिक 82 फीसदी महिलाओं के नाम कोई संपत्ति नहीं है. 53 फीसदी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा, जबकि अधिकतर महिलाओं की शिक्षा भी न के समान थी. साल 2014 में महिला शरिया अदालत में 235 केस आए थे, जिनमें से 80 फीसदी मामले मौखिक तलाक के थे.