फैसलाबाद. पाकिस्तान के फैसलाबाद के एक छोटे से कस्बे रोडाला में रहने वाले मुनव्वर शकील ने लिखने के शौक के आगे तंगहाली को भी आगे नहीं आने दिया. रोडाला में तीन दशक से मोची का काम करने वाले मुनव्वर को उनकी पांच किताबों के लिए ईनाम मिल चुका है. बचपन में ही अपने पिता को खो देने के कारण कभी […]
फैसलाबाद. पाकिस्तान के फैसलाबाद के एक छोटे से कस्बे रोडाला में रहने वाले मुनव्वर शकील ने लिखने के शौक के आगे तंगहाली को भी आगे नहीं आने दिया. रोडाला में तीन दशक से मोची का काम करने वाले मुनव्वर को उनकी पांच किताबों के लिए ईनाम मिल चुका है.
बचपन में ही अपने पिता को खो देने के कारण कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाए. 13 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखने वाले मुनव्वर किताबों के प्रकाशन के लिए रोज 10 रुपए जोड़ते हैं.
इस तरह पैसे जोड़कर उन्होंने 2004 में अपनी पहली किताब प्रकाशित करवाई. सुबह अखबार बांटने और दिन में जूतों को सही करने का काम करने वाले मुनव्वर एक मिसाल हैं उन लोगों के लिए जो सारी चीजें होने के बाद भी हिमम्त हार जाते हैं. मुनव्वर को उनकी किताबों के लिए कई तरह के पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.
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