दाराशिकोह ही नहीं तमाम मुगल शहजादों का खून उनके अपनों ने ही बहाया था

नई दिल्ली: तीस अगस्त की तारीख ने कभी मुगल खानदान के इतिहास में जो धब्बा लगाया, उसे आज भी धोने की कोशिश की जा रही है, औरंगजेब रोड का नाम नई दिल्ली से मिटाकर और एक रोड का नाम दाराशिकोह के नाम पर रखकर. उपनिषदों का अनुवाद ‘सिर्र एक अकबर’ के नाम से करवाने वाला हिंदू-इस्लाम धर्मों के तालमेल पर ‘मज्म उल बहरीन’ जैसा ग्रंथ लिखवाने वाला दाराशिकोह हर सूरत में औरंगजेब से बेहतर होता.
लेकिन तीस अगस्त की रात को औरंगजेब ने उसके बेटे के सामने ही उसकी हत्या करवा दी. ऐसा नहीं है कि मुगल खानदान के लिए अपनों का खून बहाने का ये कोई पहला मामला था, औरंगजेब से पहले भी और बाद में भी मुगल अपनों का बेदर्दी से खून बहाते रहे.
मुगल वंश की तो भारत में नींव पड़ते ही खेल शुरू हो गया था, खुद बाबर को समरकंद हारते ही वहा से भागना पड गया था. ऐसे में दौलत खां लोदी के बुलावे पर वो भारत आया. यहां आकर उसने अपना खानदान बढ़ाने के लिए सात शादियां की थीं, कई और होंगी तो इतिहास में उल्लेख नहीं. जिनसे बाबर के दस बेटे और इतनी ही बेटियां थीं. शुरूआती जीतों के बाद बाबर को अफीम, तम्बाकू और शराब के शौक लग गए थे. जल्दी ही 47 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई.
लेकिन चंगेज खान की तर्ज पर बाबर ने अपने बेटों में अपनी सल्तनत को बांटने का फैसला कर लिया था, हुमांयू के सौतेले भाई अस्करी को कांधार और कामरान को काबुल और लाहौर मिल गए थे. हालांकि बाबर खुशकिस्मत था कि उसको अपनी आंखों के सामने किसी की वगावत झेलने को नहीं मिली. लेकिन हुमायूं को अखिलेश की तरह ना सिर्फ अपने चाचा मेंहदी ख्वाजा की बल्कि एक भाई खलील मिर्जा के अलावा बाकी सब का विद्रोह झेलना पड़ा.
हुमायूं बीमार पड़ा तो अमीरों ने उसके चाचा मेंहदी को बादशाह बनाने की साजिश की, हुमायूं ने कई को मार दिया और हिंदाल को जबरन मक्का भेज दिया, जो रास्ते में ही मर गया तो कामरान को अंधा करवाकर हज भेजा, वो भी मक्का में मर गया. जबकि अकबर को कामरान की वीबी ने ही पाल पोस कर बड़ा किया था और हिंदाल की बेटी रुकैया बेगम अकबर की पहली बीवी थी.
हुमायूं के भी छह रानियां, पांच बेटे और सात बेटियां थीं. अकबर से भी पहले हुमायूं के एक बेटा हुआ था, अल अमन, ये नाम बाबर को बिलकुल पसंद नहीं आया था. जिसके कम उम्र में मौत हो जाने की वजह से अकबर को राज करने का मौका मिला. हालांकि हुमायूं भी बाबर की तरह खुशनसीब निकला कि बेटों के विद्रोह का सामना नहीं करना पड़ा, उसने अकबर से कहा भी अपने सभी भाइयों का ख्याल रखना लेकिन मिर्जा हकीम बार बार अकबर के खिलाफ विद्रोह करता रहा.
मुगल खानदान में पहला बाप अकबर था, जिसने भाइयों के बाद बेटों के भी विद्रोह का सामना किया. अकबर की कई बीवियां थीं, जिनमें 16 के नाम तो मिलते हैं, पांच बेटों और तीन बेटियों के भी नाम मिलते हैं. हालांकि उनमें से तीन बेटे ही जवान हो पाए, जिनमें सलीम, मुराद और दानियाल थे. जब अकबर अपने बाकी दो बेटों के साथ दक्कन में युद्ध लड़ रहा था, तभी सलीम ने विद्रोह कर दिया. अकबर ने उसे चेतावनी से समझाने की कोशिश की, लेकिन अकबर का गुस्सा चरम पर उस वक्त पहुंचा जब सलीम के आदेश पर वीर सिंह बुंदेला ने अकबर के करीबी अबुल फजल की हत्या कर दी.
बड़ी मुश्किल से सलीमा बेगम ने सुलह करवाई. इधर मुराद को बड़े मन से अकबर ने ईसाई और बौद्ध गुरूओं से भी शिक्षा दिलवाई थी, लेकिन उसे और दानियाल दोनों को शराब की बुरी लत लग गई, जहांगीर खुद बहुत अफीम खाता था. पहले मुराद और फिर 1604 में दानियाल की भी मौत हो गई, अकबर भी अगले साल पेचिस से मर गया. ऐसे में जहांगीर ने बाप के खिलाफ जरूर विद्रोह किया, लेकिन भाइयों की बगावत से बच गया.
लेकिन जहांगीर की किस्मत बाबर और हुमायूं जैसी अच्छी नहीं थी, बेटों ने उसे भी काफी परेशान किया। जहांगीर की सात वीबियों, पांच बेटों और तीन बेटियों के नाम तो मिलते हैं. जिनमें से प्रिंस खुर्रम या शाहजहां तीसरे नंबर का था. सबसे बड़ा खुसरो मिर्जा था, जो आमेर की हिंदू राजकुमारी से पैदा हुआ था, उसकी मां ने बाद में आत्महत्या कर ली थी. खुसरो अपने दादा अकबर का सबसे प्रिय था, खुसरो ने जहांगीर के बादशाह बनने के अगले साल ही उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया. उसे सिख गुरू अर्जुन देव ने भी मदद की. दिलावर खान ने उसे हराकर पकड़ लिया, जहांगीर ने अपने बेटे के लिए अनोखी सजा सोची.
उसको हाथी पर बैठाकर दिल्ली के चांदनी चौक में घुमाया और रास्ते में जगह जगह उसके समर्थकों को सड़क पर जगह जगह प्लेटफॉर्म बनवाकर बांध दिया और उसी हाथी के पैरों तले उन्हें कुचलवा दिया. ऊपर बैठे खुसरो की हालत सोचिए, इसी जहांगीर को न्याय की जंजीर के लिए हमारे इतिहास में जाना जाता है. फिर खुसरो को अंधा करवा दिया गया, हालांकि वो थोड़ा सा देख पाता था, पंद्रह साल तक उसे कभी जेल में, कभी आसफ खां के हवाले कभी खुर्रम यानी शाहजहां के हवाले किया और शाहजहां ने उसे 1622 में मरवा दिया.
परवेज शाहजहां से उम्र में बड़ा था, लेकिन जिस तरह वो दक्षिण के लड़ाइयों में लड़ा, सबने मान लिया कि वो बादशाहत के काबिल नहीं, लेकिन वो और शहरयार दोनों अपनी सौतेली मां नूरजहां के दामाद भी थे. बाद में परवेज की बेटी की शादी दारा शिकोह से और शहरयार की बेटी की शादी औरंगजेब से हुई थी. पहले नूरजहां ने परवेज पर दाव लगाया, महावत खान के साथ मिलकर उन्होंने शाहजहां को झुकने पर मजबूर कर दिया. शहाजहां ने नूरजहां का काबुल जाने का आदेश टाल दिय था. जिस शाहजहां को मेवाड़ विजय और गुजरात विद्रोह दबाने पर ताज का दावेदार माना जा रहा था, उसका ओहदा कम कर दिया गया.
लेकिन नूरजहां महावत खान की बढ़ती ताकत और परवेज से उसकी नजदीकी से चिंतित थी, उसने जहांगीर के सबसे छोटे बेटे और पहले पति से पैदा अपनी बेटी के शौहर शहरयार पर दाव लगाया और उसे तीन घंटे के लिए शहंशाह का ताज पहना भी दिया था. बाद में नूरजहां के भाई आसफ खां ने शहरयार और उसके परिवार को मरवा दिया, परवेज ज्यादा शराब पीने की वजह से कोमा में चला गया और मर गया. उसके बाद शाहजहां ने न्रजहां को पेंशन देकर जबरन लाहौर भेज दिया और मजबूती से बादशाहत संभाल ली.
जहांगीर ने जरूर अपने बेटे का विद्रोह काफी कड़ाई से दबा दिया, लेकिन शाहजहां इतना खुशनसीब ना था। उसके तीन रानियों से चार बेटे और तीन बेटियां ही बड़े होने तक बच पाए. शाहजहां के साथ सबसे खास बात ये थी कि उसके चारों बेटे एक ही मां के बच्चे थे, सबकी मां मुमताज महल थी और कोई भी सौतेला नहीं था, जैसा कि हुमायूं, अकबर और जहांगीर के मामलों में था. फिर भी खानदानी परम्परा जारी रही. सबसे बड़ा दारा शिकोह था, हिंदू धर्म में उसकी विशेष रुचि थी, कई हिंदू धर्म ग्रंथों का उसने फारसी में अनुवाद करवाया. माना जाता है कि दारा शिकोह जिंदा रहता तो देश का इतिहास कुछ और होता, वो शाहजहां का भी प्रिय था. उसको शाहजहां ने अपना वारिस भी घोषित कर दिया था.
शुरूआत दूसरे बेटे शाहशुजा ने की, बंगाल में अपने को बादशाह घोषित करके उसने आगरा का रुख किया, मुराद ने भी विद्रोह कर दिया. लेकिन औरंगजेब ने मुराद बख्श से हाथ मिला लिया, दोनों की सेना ने दारा की सेना को हरा दिया. बाद में उन्ही दोनों ने दारा शिकोह की सेना को भी हरा दिया, औरंगजेब ने आगरा के लाल किले में शाहजहां को बंदी बना लिया. शाहशुजा वर्मा भाग गया, जहां स्थानीय सरदारों के हाथ मारा गया.
दारा शिकोह बचकर सिंध निकल गया, मदद लेकर वापस आया, सूरत जीता, अजमेर की तरफ बढा. लेकिन वो फिर हारा तो फिर सिंध की तरफ भागा लेकिन एक सहयोगी ने धोखा दिया और पकड़कर औरंगजेब के हवाले कर दिया. उसने दिल्ली की सड़कों पर उसे जंजीरों में बांधकर घुमाया और मरवा दिया. फिर उसका सर कटवाकर शाहजहां के पास भेजा गया.
दारा शिकोह के मारने से पहले औरंगजेब ने आखिरी कांटे यानी अपने सबसे छोटे भाई मुराद को धोखे से गिरफ्तार करवा लिया और उसे ग्वालियर किले में एक दीवान की हत्या के आरोप में तीन साल जेल में रखकर 1661 में फांसी दे दी गई. शाहजहां को लाल किले में बंद कर अपनी बहन जहांआरा को पिता की सेवा के लिए उनके साथ ही रख दिया. ऐसे में करीब आठ साल शाहजहां ने आगरा के लाल किले में गुजारे, और वहीं से ताजमहल को निहारते निहारते शाहजहां का जीवन बीता.
औरंगजेब ने बादशाह बनने से पहले ही बेटे की बगावत झेल ली, उसका सबसे बड़ा बेटा था सुल्तान, मोहम्मद सुल्तान, जिसकी शादी औरंगजेब के भाई शाहशुजा से हुई थी. सुल्तान ने ताज की लड़ाई में अपने बाप की बजाय अपने ससुर शाहशुजा का साथ दिया था, लेकिन अपने बाप के बादशाह बनते ही उसने फिर से उससे रिश्ते कायम कर लिए. लेकिन औरंगजेब को उसपर भरोसा नहीं था, उसने उसे ग्वालियर किले में बंद करवा दिया. करीब 12 साल जेल में रहा वो और वहीं मर गया.
औरंगजेब के और और बेटे सुल्तान मो. अकबर ने भी विद्रोह कर दिया, लेकिन नाकामयाब होने पर ईरान भाग गया, जहां उसकी मौत हो गई. विद्रोह के दौरान वो औरंगजेब के कई विरोधियों से मदद मांगने गया, शिवाजी के बेटे सम्भाजी ने उसे बचाकर ईरान भेज दिया. उसके बच्चों को राजपूतों ने पाला. लेकिन वो ईरान में ही औरंगजेब के मरने से तीन साल पहले ही मर गया. औरंगजेब ने अपना उत्तराधिकारी चुना मो. आजम शाह को लेकिन औरंगजेब के बाद जब वो बादशाह बना तो उसके सौतेले भाई शाह आलम यानी बहादुर शाह जफर उसी साल उसे रास्ते से हटाकर खुद मुगल बादशाह की कुर्सी पर बैठ गया.
जबकि पांचवे बेटे काम बख्श ने जैसे ही औरंगजेब के मरने की खबर सुनी, उसने भी खुद को बादशाह घोषित कर दिया. करीब एक साल तक बहादुर शाह जफर प्रथम (शाह आलम) और उसके बीच तनातनी चलती रही, आखिरकार एक युद्ध में वो बुरी तरह घायल हो गया तो उसे पकड़कर शाह आलम के तम्बू में लाया गया, जहां उसने उसके घावों को खुद साफ किया, उसके मरहम लगाया, लेकिन अगले दिन वो मर गया. इस तरह मुगल बादशाहत की कमान शाह आलम यानी बहादुर शाह जफर प्रथम के हाथ में आ गई.
हालांकि आम जनता औरंगजेब के बाद सीधे आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को ही जानती है, लेकिन सच तो ये है कि बाप-बेटे या भाइयों के बीच इस खूनी खेल का सिलसिला यहीं नहीं रुका. इस दौरान दस बादशाह और बने और तमाम बादशाहों या उनके बेटों को ऐसी ही मौत नसीब हुई.
किसी को नंगा करके मारकर लाश लाल किले के पीछे खाई में फेंक दी गई तो किसी को अंधा करके मार दिया गया, किसी के बच्चों को मार दिया गया तो किसी को उनके वजीर ने ही बंधक बना कर मार दिया. हालांकि बुद्ध के समय मगध साम्राज्य के एक प्रतापी शासक अजातशत्रु ने भी अपने पिता बिम्बसार को मार कर गद्दी हथियाई थी. ये ईसा से भी 400-500 साल पहले की बात है, हिंदू राजाओं में भाइयों के साथ सत्ता की जंग के तो कई उदाहरण मिलते हैं, लेकिन पिता-पुत्र के ना के बराबर हैं.
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