नई दिल्ली : मोहम्मद रफी साहब का गाना ‘घोड़ी पर होके सवार चला है दूल्हा यार…’ तो आपने सुना ही होगा. जब भी किसी की शादी होती है दूल्हे को घोड़ी पर ही बैठाया जाता है. आपने कभी नहीं देखा होगा कि किसी दूल्हे को घोड़े पर बैठाया जाता है. मगर क्या आपने कभी सोचा कि आखिर दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाया जाता है?
दरअसल, हम सभी अपने समाज में इसे देखते और मानते जरूर आ रहे हैं लेकिन अभी भी इसकी वजह से अनजान हैं. हमने कभी नहीं देखा कि दूल्हे को घोड़ी के बदले किसी अन्य जानवर पर बैठाया गया होगा या फिर यहां तक की घोड़े पर भी. तो चलिये जानते हैं कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है…
दरअसल, हिंदूओं की शादिय के रीति-रिवाज में ही ये शामिल है कि दूल्हे को हमेशा घोड़ी पर ही बैठना है. साथ ही हिंदू मान्यताओं के अनुसार घोड़ी को उत्पत्ति का कारक माना गया है. ऐसा माना जाता है कि घोड़ी बुद्धिमान, चतुर और दक्ष होती है. उसे सिर्फ स्वस्थ और योग्य व्यक्ति ही नियंत्रित कर सकता है. यही वजह है कि दूल्हे को घोड़ी पर बैठना होता है.
इसके अलावा ये भी माना जाता है कि पहले के जमाने में युद्ध लड़कर अथवा वीरता का प्रदर्शन कर दुल्हन को प्राप्त किया जाता था. यानी कि दुल्हन के लिए दूल्हे को लड़ाई लड़नी पड़ती थी. जब वो जंग जीत लेते थे तो उन्हें घोड़ी पर बैठाया जाता था और तब दूल्हा दुल्हन लेने जाता था.
पुराणों की मानें तो बहुत समय पहले जब सूर्य देव की चार संतानों, यम, यमी, तपती और शनि देव का जन्म हुआ. उस समय सूर्यदेव की पत्नी रूपा ने घोड़ी का ही रूप धारण किया था. तभी से घोड़ी को उत्पत्ति का कारक माना जाने लगा. यही वजह है कि उसकी सवारी करना दूल्हे के लिए शुभ माना जाता है. साथ ही आज के समय में भी घोड़ी को शगुन का प्रतीक माना जाता है.
इस बारे में एक और मान्यता ये है कि घोड़ी पर लगाम सिर्फ वही शख्स रख सकता है जो पूरी तरह से स्वस्थ होगा. साथ ही यह भी माना जाता है कि घोड़ी की बाग डोर जो संभाल सकता है इसका मतलब ये हुआ कि अब वह परिवार की बागडोर भी संभाल सकता है.