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ख़बर ज़रा हटकर: बिहार के गया में भिखारी चलाते हैं बैंक

गया. बिहार के गया शहर में भिखारियों के एक समूह ने अपना एक बैंक खोल लिया है, जिसे वे ही चलाते हैं और उसका प्रबंधन करते हैं, ताकि संकट के समय उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिल सके. गया शहर में मां मंगलागौरी मंदिर के द्वार पर वहां आने वाले सैकड़ों श्रद्धालुओं की भिक्षा पर आश्रित रहने […]

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  • March 30, 2015 12:12 pm Asia/KolkataIST, Updated 10 years ago

गया. बिहार के गया शहर में भिखारियों के एक समूह ने अपना एक बैंक खोल लिया है, जिसे वे ही चलाते हैं और उसका प्रबंधन करते हैं, ताकि संकट के समय उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिल सके. गया शहर में मां मंगलागौरी मंदिर के द्वार पर वहां आने वाले सैकड़ों श्रद्धालुओं की भिक्षा पर आश्रित रहने वाले दर्जनों भिखारियों ने इस बैंक को शुरू किया है. भिखारियों ने इसका नाम मंगला बैंक रखा है.

इस अनोखे बैंक के 40 सदस्यों में से एक राज कुमार मांझी ने कहा, “यह सत्य है कि हम ने अपने लिए एक बैंक स्थापित किया है.” यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर गया में मांझी ने आईएएनएस से कहा, “बैंक प्रबंधक, खजांची और सचिव के साथ ही एक एजेंट और बैंक चलाने वाले अन्य सदस्य सभी भिखारी हैं.”

संयोग से इस बैंक के प्रबंधक मांझी हैं. बैंक के खातों एवं अन्य काम प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त रूप से शिक्षित मांझी ने कहा, “हम में से हर एक बैंक में हर मंगलवार को 20 रुपये जमा करात हैं जो 800 रुपये साप्ताहिक जमा हो जाता है.” बैंक के एजेंट विनायक पासवान ने कहा कि उनका काम हर हफ्ते सदस्यों से पैसे लेकर जमा कराना है.

छह माह पहले स्थापित बैंक की सचिव मालती देवी ने कहा, “यह पिछले वर्ष बड़ी उम्मीद के साथ और भिखारियों की अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए शुरू किया गया. हमारे साथ अभी तक समाज में अच्छा व्यवहार नहीं होता, क्योंकि हम गरीबों में भी गरीब हैं.” भिखारियों से अपना खाता खुलवाने के लिए मालती अब ज्यादा से ज्यादा भिखारियों से संपर्क साध रही हैं.

उन्होंने कहा, “बैंक के सदस्य जो भिखारी हैं, उनके पास न तो बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) और न ही आधार कार्ड है.” मांझी की पत्नी नगीना देवी बैंक की खजांची है. उन्होंने कहा, “मेरा काम जमा हुए पैसों का लेन-देन करना है.” मांझी ने कहा कि उनका बैंक आपात स्थिति आने पर भिखारियों की मदद करता है. उन्होंने कहा, “इस माह की शुरुआत में मेरी बेटी और बहन खाना पकाते समय झुलस गई थीं. बैंक ने उनका इलाज कराने के लिए मुझे 8000 रुपये का कर्ज दिया.”

मांझी ने कहा कि यह इस बात का उदाहरण है कि उनके जैसे भिखारी को बैंक किस तरह मदद कर सकता है. यह मदद राष्ट्रीयकृत बैंकों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, जैसे कागजी काम या जमानतदार के बगैर पूरी होती है. मांझी को एक माह तक इस कर्ज पर ब्याज नहीं देना पड़ा. वहीं, मालती ने कहा, “बैंक ने धन वापसी का दबाव बनाने के लिए कर्ज पर 2 से 5 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करना अनिवार्य किया है.”

नाथुन बुद्धा, बसंत मांझी, रीता मसोमात व धौला देवी ने कहा कि उन्हें यह खुशी है कि उनके पास अब कम से कम अपना बैंक तो है. भिखारियों को अपना बैंक शुरू करने के लिए अत्यंत निर्धन एवं समाज कल्याण राज्य समिति के अधिकारियों ने इसी वर्ष प्रोत्साहित किया था.

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