कोलकाता की झुग्गियों में रहती हैं मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के परिवार की पौत्रवधु

हिंदुस्तान की सरजमीं पर जिन्होंने 400 साल तक शासन किया, जिनके इशारे के बिना एक पत्ता तक नहीं हिलता था, आज उसी मुगल सल्तनत के परिवार की पौत्रवधु की ऐसी स्थिति हो गई है जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.

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कोलकाता की झुग्गियों में रहती हैं मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के परिवार की पौत्रवधु

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  • December 8, 2016 8:31 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
कोलकाता : हिंदुस्तान की सरजमीं पर जिन्होंने 400 साल तक शासन किया, जिनके इशारे के बिना एक पत्ता तक नहीं हिलता था, आज उसी मुगल सल्तनत के परिवार की पौत्रवधु की ऐसी स्थिति हो गई है जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.
 
मुगल सल्तनत के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर की पौत्रवधु सुल्ताना की ऐसी स्थिति हो गई है कि वह अब कोलकाता की झुग्गियों में रहने पर मजबूर हैं. सुल्ताना के नसीब में भव्य महलों में रहना नहीं लिखा है, बल्कि वह कोलकाता की एक बस्ती में एक कमरे में अपने नवासा (नाती) के साथ रह रही हैं.
 
सरकार ने बंद कर दी पेंशन
न्यूज़ पेपर और वेब पोर्टल दैनिक जागरण को दिए इंटरव्यू में सुल्ताना बेगम ने अपनी कहानी सुनाई. उन्होंने बताया कि उनका निकाह मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त से हुआ था. बेदार बख्त जब तक जीवित थे तब तक उन्हें सरकार 400 रुपये पेंशन देती थी जीवन बसर करने के लिए, लेकिन 1980 में बेदार की मौत के बाद पेंशन बंद हो गई.
 
पेंशन न मिलने के कारण सुल्ताना को अपने एक पुत्र और पांच बेटियों का पेट पालने के लिए कोलकाता के डॉलीगंज इलाके में चाय की दुकान खोलनी पड़ी. पश्चिम बंगाल की सरकार ने सुल्ताना को 1981 में दो कमरे का सरकारी मकान दिया, जिसे 1983 में वापस छीन लिया गया.
 
महीने के 6 हजार देती है सरकार
सरकारी मकान छिनने के बाद से लेकर आज तक सुल्ताना कोलकाता के हावड़ा में रहने वाले अपने सिख मुंहबोले भाई के घर में एक कमरे में ही रहने को मजबूर हैं. साल 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपने कार्यकाल में छह हजार रुपये की पेंशन देना शुरू की, लेकिन 6000 रुपये में इतनी महंगाई के जमाने में सुल्ताना का जीवन बसर हो पाना काफी मुश्किल हो गया है.
 
कौन थे बहादुर शाह जफर ?
बहादुर शाह जफर मुगल सल्तनत के अंतिम बादशाह थे, उन्होंने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया था. विद्रोह को बुरी तरह से दबा देने के बाद अंग्रेजों ने जफर को उनकी पत्नी जीनत के साथ रंगून भेज दिया था. रंगून में ही जफर की साल 1862 में मौत हो गई थी. 
 
जफर को रंगून भेजने के बाद उनके कई बच्चों और पोतों-पोतियों की हत्या कर दी गई थी. जफर जब रंगून में थे तब उनके बेटे जमशेद बख्त पैदा हुए थे. जमशेद बख्त ही सुल्ताना के ससुर थे. उनकी शादी नादिरजहां बेगम से हुई थी.
 
नादिर की मौत के बाद जमशेद अपने बेटे बेदार के साथ हिंदुस्तान आ गए थे और आजादी मिलने तक उन्होंने अपनी पहचान छिपाए रखी थी.

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