बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित 'सोन भंडार गुफा' के बारे में कई तरह की बातें प्रचलित हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा के नीचे बेशकीमती खजाना दफन है. इसे लूटने के लिए अंग्रेजों ने तोप से गोले बरसाए पर नाकाम रहे. बताया जाता है कि मौर्य शासक बिंबिसार ने यह गुफा बनवाई थी. मौर्य शासक बिंबिसार ने अपने शासन काल में राजगीर में एक बड़े पहाड़ को काटकर अपने खजाने को छुपाने के लिए गुफा बनाई थी. जिस कारण इस गुफा का नाम पड़ा था सोन भंडार. इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि सोने को सहेजने के लिए इस गुफा को बनवाया गया था. पूरी चट्टान को काटकर यहां पर दो बड़े कमरे बनवाए गए थे.
नई दिल्ली. बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित ‘सोन भंडार गुफा’ के बारे में कई तरह की बातें प्रचलित हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा के नीचे बेशकीमती खजाना दफन है. इसे लूटने के लिए अंग्रेजों ने तोप से गोले बरसाए पर नाकाम रहे. बताया जाता है कि मौर्य शासक बिंबिसार ने यह गुफा बनवाई थी. मौर्य शासक बिंबिसार ने अपने शासन काल में राजगीर में एक बड़े पहाड़ को काटकर अपने खजाने को छुपाने के लिए गुफा बनाई थी. जिस कारण इस गुफा का नाम पड़ा था सोन भंडार. इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि सोने को सहेजने के लिए इस गुफा को बनवाया गया था. पूरी चट्टान को काटकर यहां पर दो बड़े कमरे बनवाए गए थे.
गुफा के पहले कमरे में जहां सिपाहियों के रुकने की व्यवस्था थी. वहीं, दूसरे कमरे में खजाना रखा गया था. दूसरे कमरे को पत्थर की एक बड़ी चट्टान से ढंका गया है. जिसे आजतक कोई नहीं खोल पाया. अंग्रेजों ने इस गुफा को तोप के गोले से उड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें नाकामयाब रहे. आज भी इस गुफा पर उस गोले के निशान देखे जा सकते हैं. अंग्रेजों ने इस गुफा में छिपे खजाने को पाने के लिए यह कोशिश की थी, लेकिन वह जब नाकाम हुए तो वापस लौट गए.
सोन भंडार गुफा में अंदर प्रवेश करते ही 10.4 मीटर लंबा चौड़ा और 5.2 मीटर चौड़ा कमरा है. इस कमरे की ऊंचाई लगभग 1.5 मीटर है. यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया गया था. इसी कमरे के दूसरी ओर खाजाने का कमरा है. जो कि एक बड़ी चट्टान से ढंका हुआ है. मौर्य शासक के समय बनी इस गुफा की एक चट्टान पर शंख लिपि में कुछ लिखा है. इसके संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि इसी शंख लिपि में इस खजाने के कमरे को खोलने का राज लिखा है. दोनों ही गुफा तीसरी और चौथी शताब्दी में चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं. इन गुफाओं के कमरों को पॉलिश किया गया है. इस तरह की गुफा देश में कम पाई जाती हैं.