बेंगलुरू : लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का सभी पार्टियां क्रिमिनल को टिकट देती है ताकि चुनावों में उनको फायदा हो. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब लगभग 20 दिन बचे हुए है और सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल लगातार क्रिमिनल उम्मीदवार उतार रही […]
बेंगलुरू : लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का सभी पार्टियां क्रिमिनल को टिकट देती है ताकि चुनावों में उनको फायदा हो. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब लगभग 20 दिन बचे हुए है और सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल लगातार क्रिमिनल उम्मीदवार उतार रही है. इनकी छवि अपने इलाके में रॉबिन हुड की तरह होती है जिसकी बदौलत ये चुनाव जीत भी जाते है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दो प्रमुख दल है वहीं जेडीएस की भी कुछ इलकों में जनाधार है. 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पिछले बार हुए विधानसभा चुनाव से 5 फीसदी अधिक दागी उम्मीदवार है. 2008 के विधानसभा चुनाव में 20 फीसदी दागी उम्मीदवार जीतकर सदन पहुंचे थे. वहीं 2013 और 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 30 फीसदी से अधिक हो गया.
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 77 विधायक ऐसे है जिन्होंने आपराधिक मामले की जानकारी दी थी. बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में दागी उम्मीदवारों को अधिक टिकट दिया था. एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 में बीजेपी के लगभग 30 फीसदी विधायक क्रिमिनल केस का सामना कर रहे है. वहीं 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 40 फीसदी से अधिक हो जाता है. वहीं कर्नाटक की क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस में लगभग 30 फीसदी दागी विधायक हैं.
चुनाव लगातार महंगा होता जा रहा है और पार्टियों को फंड की जरूरत पड़ रही है. इसलिए राजनीतिक दल पैसे वाले लोगों को टिकट दे रही है ताकि पार्टी फंड में पैसा आ सके. राजनीतिक दलों को सोचना होगा की वे क्यों क्रिमनलों को टिकट दे रही है.