बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा के नतीजे सामने आ चुके हैं जो भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हुए. चुनावी रैलियों में अपनी पूरी जान फूंकने वाली भाजपा को कांग्रेस ने हरा दिया है.कांग्रेस के खाते में बहुमत से भी अधिक सीटें आई है. क्योंकि इस विधानसभा चुनाव के लिए पीएम मोदी ने खुद प्रचार किया था. […]
बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा के नतीजे सामने आ चुके हैं जो भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हुए. चुनावी रैलियों में अपनी पूरी जान फूंकने वाली भाजपा को कांग्रेस ने हरा दिया है.कांग्रेस के खाते में बहुमत से भी अधिक सीटें आई है. क्योंकि इस विधानसभा चुनाव के लिए पीएम मोदी ने खुद प्रचार किया था. विपक्ष को इसपर बोलने का पूरा मौका मिल गया है. फिलहाल के लिए भाजपा 80 से कम सीटों पर ही सिमटी हुई है. लेकिन एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार प्रसार करते समय पूरी जान फूंकने वाली भाजपा ने कहां गलती कर दी?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण किसी मजबूत चेहरे का अभाव होना रहा है. सीएम की कुर्सी होने के बाद भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नज़र नहीं आया वहीं कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया थे जिनके आगे बोम्मई को चुनावी मैदान में उतरना BJP को महंगा पड़ा.
भाजपा की हार का एक और अहम कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा. भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ने ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया जो धीरे-धीरे पार्टी के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया. इसका असर भी आप देख सकते हैं कि एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वहीं भाजपा के अन्य विधायक को जेल की हवा खानी पड़ी. पीएम तक से स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने शिकायत कर डाली. भाजपा के लिए चुनाव में ये मुद्दा गले में फांस की तरह अटक गया.
भाजपा कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी साधने में असफल साबित हुई है. बीजेपी ना तो अपने कोर वोट बैन लिंगायत समुदाय को प्रभावित कर पाई और ना ही दलित, आदिवासी, OBC या वोक्कलिंगा समुदाय को. मुस्लिमों से लेकर दलित, ओबीसी को जोड़ने में कांग्रेस पूरी तरह से सफल रही.
पिछले एक साल से भाजपा नेता कर्नाटक में हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते नज़र आए. चुनावी काल में बजरंगबली की भी एंट्री हुई लेकिन भाजपा को धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिश काम नहीं आई. भाजपा ने बजरंग दल को सीधे तौर पर बजरंग बलि से जोड़ दिया जिसे कांग्रेस ने अलग मुद्दा बनाया और इसे भगवान का अपमान बताया. हिंदुत्व कार्ड भी भाजपा के काम ना आ सका.
बीजेपी को कर्नाटक में खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा साइड लाइन में दिखाई दिए. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का भाजपा ने टिकट भी काटा लेकिन दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे. लिंगायत समुदाय के
तीन बड़े नेता येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया.
भाजपा की हार का बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर की काट ना तलाश पाना भी रहा. भाजपा के सत्ता में रहने के कारण लोगों में उसके खिलाफ पहले से ही नाराज़गी थी. बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी हावी रही जिससे निपटने के लिए भाजपा पूरी तरह से तैयार नहीं थी.
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